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    Narasimha Kavacham: गुप्त शत्रुओं को शांत करेगा ये शक्तिशाली नृसिंह कवच, जानें पाठ का लाभ

    By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Fri, 03 Nov 2023 01:46 PM (IST)

    Narasimha Kavacham ज्योतिष शास्त्र में भगवान नृसिंह की पूजा बेहद फलदायी मानी गई है जिसे अपने जीवन की बाधाओं को दूर करना या फिर गुप्त शत्रुओं को शांत करना है उन्हें नृसिंह कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए। आइए जानते हैं- नृसिंह कवच के क्या लाभ हैं-

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    Narasimha Kavacham: नृसिंह कवच के लाभ

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Narasimha Kavacham: भगवान नृसिंह श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। उनका स्वरूप बेहद शक्तिशाली है। कहा जाता है, वे अपने भक्तों की रक्षी हर हाल में करते हैं। भगवान नरसिम्हा को आधे मनुष्य और आधे शेर के रूप में दर्शाया गया है, उनका धड़ मानव जैसा और निचला शरीर, शेर के चेहरे जैसा हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वे भगवान विष्णु के सबसे उग्र रूपों में से एक हैं, जो सभी नकारात्मक ऊर्जाओं से अपने भक्तों की रक्षा करते हैं, जो लोग किसी बड़ी बाधा से पीड़ित हैं, उन्हें भगवान नृसिंह की पूजा अवश्य करनी चाहिए, जिससे उनके जीवन की सभी नकारात्मकता का अंत हो सके।

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    ज्योतिष शास्त्र में भगवान नृसिंह के कवच का पाठ बेहद फलदायी माना गया है। ऐसे में जिन्हें अपने जीवन की नकारात्मकता को दूर करना है, तो उन्हें इस कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए।

    ॥'नृसिंह कवच'॥

    नृसिंह कवचम वक्ष्येऽ प्रह्लादनोदितं पुरा ।

    सर्वरक्षाकरं पुण्यं सर्वोपद्रवनाशनं ॥

    सर्वसंपत्करं चैव स्वर्गमोक्षप्रदायकम ।

    ध्यात्वा नृसिंहं देवेशं हेमसिंहासनस्थितं॥

    विवृतास्यं त्रिनयनं शरदिंदुसमप्रभं ।

    लक्ष्म्यालिंगितवामांगम विभूतिभिरुपाश्रितं ॥

    चतुर्भुजं कोमलांगम स्वर्णकुण्डलशोभितं ।

    ऊरोजशोभितोरस्कं रत्नकेयूरमुद्रितं ॥

    तप्तकांचनसंकाशं पीतनिर्मलवासनं ।

    इंद्रादिसुरमौलिस्थस्फुरन्माणिक्यदीप्तिभि: ॥

    विराजितपदद्वंद्वं शंखचक्रादिहेतिभि:।

    गरुत्मता च विनयात स्तूयमानं मुदान्वितं ॥

    स्वहृतकमलसंवासम कृत्वा तु कवचम पठेत

    नृसिंहो मे शिर: पातु लोकरक्षात्मसंभव:।

    सर्वगोऽपि स्तंभवास: फालं मे रक्षतु ध्वनन ।

    नरसिंहो मे दृशौ पातु सोमसूर्याग्निलोचन: ॥

    शृती मे पातु नरहरिर्मुनिवर्यस्तुतिप्रिय: ।

    नासां मे सिंहनासास्तु मुखं लक्ष्मिमुखप्रिय: ॥

    सर्वविद्याधिप: पातु नृसिंहो रसनां मम ।

    वक्त्रं पात्विंदुवदन: सदा प्रह्लादवंदित:॥

    नृसिंह: पातु मे कण्ठं स्कंधौ भूभरणांतकृत ।

    दिव्यास्त्रशोभितभुजो नृसिंह: पातु मे भुजौ ॥

    करौ मे देववरदो नृसिंह: पातु सर्वत: ।

    हृदयं योगिसाध्यश्च निवासं पातु मे हरि: ॥

    मध्यं पातु हिरण्याक्षवक्ष:कुक्षिविदारण: ।

    नाभिं मे पातु नृहरि: स्वनाभिब्रह्मसंस्तुत: ॥

    ब्रह्माण्डकोटय: कट्यां यस्यासौ पातु मे कटिं ।

    गुह्यं मे पातु गुह्यानां मंत्राणां गुह्यरुपधृत ॥

    ऊरु मनोभव: पातु जानुनी नररूपधृत ।

    जंघे पातु धराभारहर्ता योऽसौ नृकेसरी ॥

    सुरराज्यप्रद: पातु पादौ मे नृहरीश्वर: ।

    सहस्रशीर्षा पुरुष: पातु मे सर्वशस्तनुं ॥

    महोग्र: पूर्वत: पातु महावीराग्रजोऽग्नित:।

    महाविष्णुर्दक्षिणे तु महाज्वालस्तु निर्रुतौ ॥

    पश्चिमे पातु सर्वेशो दिशि मे सर्वतोमुख: ।

    नृसिंह: पातु वायव्यां सौम्यां भूषणविग्रह: ॥

    ईशान्यां पातु भद्रो मे सर्वमंगलदायक: ।

    संसारभयद: पातु मृत्यूर्मृत्युर्नृकेसरी ॥

    इदं नृसिंहकवचं प्रह्लादमुखमंडितं ।

    भक्तिमान्य: पठेन्नित्यं सर्वपापै: प्रमुच्यते ॥

    पुत्रवान धनवान लोके दीर्घायुर्उपजायते ।

    यंयं कामयते कामं तंतं प्रप्नोत्यसंशयं ॥

    सर्वत्र जयवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत ।

    भुम्यंतरिक्षदिवानां ग्रहाणां विनिवारणं ॥

    वृश्चिकोरगसंभूतविषापहरणं परं ।

    ब्रह्मराक्षसयक्षाणां दूरोत्सारणकारणं ॥

    भूर्जे वा तालपत्रे वा कवचं लिखितं शुभं ।

    करमूले धृतं येन सिद्ध्येयु: कर्मसिद्धय: ॥

    देवासुरमनुष्येशु स्वं स्वमेव जयं लभेत ।

    एकसंध्यं त्रिसंध्यं वा य: पठेन्नियतो नर: ॥

    सर्वमंगलमांगल्यंभुक्तिं मुक्तिं च विंदति ।

    द्वात्रिंशतिसहस्राणि पाठाच्छुद्धात्मभिर्नृभि: ।

    कवचस्यास्य मंत्रस्य मंत्रसिद्धि: प्रजायते।

    आनेन मंत्रराजेन कृत्वा भस्माभिमंत्रणम ॥

    तिलकं बिभृयाद्यस्तु तस्य गृहभयं हरेत।

    त्रिवारं जपमानस्तु दत्तं वार्यभिमंत्र्य च ॥

    प्राशयेद्यं नरं मंत्रं नृसिंहध्यानमाचरेत ।

    तस्य रोगा: प्रणश्यंति ये च स्यु: कुक्षिसंभवा: ॥

    किमत्र बहुनोक्तेन नृसिंहसदृशो भवेत ।

    मनसा चिंतितं यस्तु स तच्चाऽप्नोत्यसंशयं ॥

    गर्जंतं गर्जयंतं निजभुजपटलं स्फोटयंतं

    हरंतं दीप्यंतं तापयंतं दिवि भुवि दितिजं क्षेपयंतं रसंतं ।

    कृंदंतं रोषयंतं दिशिदिशि सततं संभरंतं हरंतं ।

    विक्षंतं घूर्णयंतं करनिकरशतैर्दिव्यसिंहं नमामि ॥

    ॥ इति प्रह्लादप्रोक्तं नरसिंहकवचं संपूर्णंम ॥

    ॥नृसिंह कवच के लाभ॥

    • नृसिंह कवच एक ढाल की तरह होता है, जो बुरी आत्माओं, बुरी ऊर्जा और बुरी नजर से साधक की रक्षा करता है।
    • जो व्यक्ति इस कवच का पाठ प्रतिदिन पाठ करता है, उसे जीवन में कभी किसी बाधा और कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता।
    • किसी लंबी यात्रा पर जाने से पहले इस कवच को अवश्य सुनना चाहिए।
    • जो लोग अपने आसपास नकारात्मक ऊर्जा महसूस करते हैं, उन्हें इस कवचम का पाठ जरूर करना चाहिए।
    • गुप्त शत्रुओं से बचने के लिए इस कवच को जरूर सुनना चाहिए।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'