Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कांसुवा के राजकुंवर आज पहुंचेंगे नौटी

    कांसुवा यूं तो श्री नंदा देवी राजजात का तीसरा पड़ाव है, लेकिन जात का औपचारिक शुभारंभ यहीं से होता है। राजा के अनुजों का यह गांव नौटी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। यहीं से राजकुंवर राजछंतौली, नंदा की स्वर्ण प्रतिमा और चौसिंग्या खाडू (मेढ़ा) के साथ आज नौटी पहुंचेंगे। समुद्रतल से 1530 मीटर

    By Edited By: Updated: Sun, 17 Aug 2014 02:22 PM (IST)

    देहरादून, जागरण संवाददाता। कांसुवा यूं तो श्री नंदा देवी राजजात का तीसरा पड़ाव है, लेकिन जात का औपचारिक शुभारंभ यहीं से होता है। राजा के अनुजों का यह गांव नौटी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। यहीं से राजकुंवर राजछंतौली, नंदा की स्वर्ण प्रतिमा और चौसिंग्या खाडू (मेढ़ा) के साथ आज नौटी पहुंचेंगे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    समुद्रतल से 1530 मीटर की ऊंचाई पर स्थित 100 परिवारों वाले कांसुवा की कुल आबादी 462 है। कर्णप्रयाग से 35 किलोमीटर की दूरी पर राजा के कान्से (छोटे) भाई के इस गांव में नंदा देवी, भराड़ी देवी व कैलापीर के मंदिर हैं। भराड़ी चौक में सर्वप्रथम चार सींग वाले मेढ़े और पवित्र रिंगाल की राजछंतौली की पूजा-अर्चना होती है। और.. फिर ढोल-दमाऊ व भंकोरों के साथ राजकुंवर चल पड़ते हैं नौटी की ओर।

    कहते हैं कि राजा कनकपाल के छोटे भाई चांदपुरगढ़ी के नजदीक जा बसे थे। उस स्थान का नाम कांसुवा पड़ा और वे कांसुवा के कुंवर पुकारे जाने लगे। परंपरा के अनुसार हर बारहवें साल बाद जब-जब श्री नंदा देवी दोषोत्पत्ति आभास होता है, कांसुवा के राजवंशीय कुंवर राजजात मनौती स्वरूप रिंगाल की छंतोली (छाता) लेकर नौटी आते हैं। इस बीच देवी स्वरूप चार सींग वाला मेढ़ा कुंवरों की थोकदारी में जन्म लेता है और कुंवर लोग इस मेढ़े और रिंगाल की छंतोली लेकर सुसमय पर देवी मंदिर नौटी पहुंचते हैं। आज ऐसा ही सुसमय है।

    पौ फटते ही छंटने लगे आशंका के बादल

    नौटी से सुभाष भट्ट। एक तरफ नंदा देवी राजजात में शामिल होने की उत्कंठा और दूसरी तरफ बारिश का खौफ। पहाड़ का शायद ही कोई हिस्सा ऐसा होगा, जहां बारिश ने कहर न बरपाया हो। इसी आशंका के बीच हम शुक्रवार शाम को ही यात्रा की तैयारियों में जुट गए। हालांकि मन नहीं माना तो मैं सीधे सचिवालय परिसर स्थित डीएमएमसी (राज्य आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र) पहुंचा। वहां रिपोर्ट मिली की देवप्रयाग का रास्ता पांच-छह स्थानों पर बंद है। सभी अधिकारी इसी चिंता में घुले जा रहे थे कि आगे क्या होगा। स्वयं चीफ सेक्रेट्री तक स्थिति पर निगाहें गड़ाए हुए थे। कुल मिलाकर दहशत वाला माहौल नजर आ रहा था वहां।

    डीएमएमसी के निदेशक पीयूष रौतेला और उप सचिव संतोष बडोनी भी इसी चर्चा में डूबे थे कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में टीम कैसे भेजी जाएं। उन्होंने बताया कि एक टीम नौटी के लिए भेजी थी, जो शिवपुरी से आगे नहीं जा पाई। ऐसे में समस्या यह खड़ी हो गई कि आखिर हम नौटी पहुंचेंगे कैसे। खैर, आखिर में हमने तय किया कि मसूरी-धनोल्टी-गडोलिया होते हुए मलेथा पहुंचा जाए और शनिवार सुबह हम इसी राह पर निकल पड़े। हालांकि, चिंता कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही थी। मैंने शिवपुरी में फंसी डिजास्टर मैनेजमेंट की टीम में शामिल सदस्यों से संपर्क किया तो पता चला कि वह भी अब धनोल्टी के रास्ते ही जाएंगे। खैर! पौ फटते ही आशंका के बादल छंटने लगे। हमें रास्ते में किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई। चारों ओर धूप खिली हुई थी और हम शाम साढ़े चार बजे कर्णप्रयाग पहुंच गए।

    कुछ देर इंतजार के बाद कर्णप्रयाग से नौटी के लिए ट्रैकर मिल गया। रास्ता वैसे तो दुरुस्त है, लेकिन कर्णप्रयाग-नौटी के बीच हिलोरी गदेरा सड़क को पांच-छह स्थानों पर डेमेज कर रहा है। साढ़े छह बजे के आसपास हम नौटी पहुंच गए। भारी भीड़ है यहां। स्थानीय लोग आगंतुकों का स्वागत कर रहे हैं। मंदिर में भजन चल रहे हैं। आनंदित कर रहा है यहां का माहौल। हालांकि, सुनने में यह भी आ रहा है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आयोजकों से नंदा राजजात स्थगित करने की अपील की है। तो क्या राजजात सचमुच स्थगित हो जाएगी। आखिर छह महीने से क्या कर रही थी सरकार। इसका मतलब तो यह हुआ कि उसके सारे दावे खोखले थे। ऐसी बारिश का होना तो उत्तराखंड के लिए कोई नई बात नहीं है। इस आशंका के बाबत मैंने श्री नंदा देवी राजजात समिति के महामंत्री भुवन नौटियाल से पूछा तो उनका दोटूक कहना था कि यह कोई चारधाम यात्रा नहीं है, जिसे आठ-दस दिन के लिए स्थगित कर दिया जाए। यात्रा अपने नियत मुहूर्त पर चलेगी।

    नंदा राजजात की सफलता को विशेष पूजा अर्चना

    देहरादून। नंदा राजजात यात्र की सफलता के लिए शनिवार को माता वैष्णों देवी गुफा मंदिर टपकेश्वर महादेव में विशेष पूजा अर्चना की गई। आयोजन में उत्तराखंड के पारंपरिक वाद्य ढोल दमाऊ की थाप, जय हो जगदम्बा, जय नंदा भवानी.. गढ़वाले की नंदा देबो.. त्वै फूल पाती चढ़ोला.. जैसे मधुर लोक और भक्तिगीतों से माहौल भक्तिमय हो गया। इसके साथ ही मंत्रोच्चारण से देवोपासना की गई। श्रद्धालुओं के मुख्य आकर्षण का केंद्र रही नंदा राजजात की डोली, जिसकी विशेष पूजा अर्चना के बाद पारंपरिक ढंग से नीति माणा घाटी कल्याण समिति के श्रद्धालुओं ने पूरे मंदिर परिसर में डोली को घुमाया। चाचड़ी, झुमैलो, चौफला के साथ-साथ बगड़वाल नृत्य भी श्रद्धालुओं ने किया। इस अवसर पर आचार्य विपिन जोशी, नीति माणा घाटी कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ. मान सिंह राणा, पूर्व मुख्य वन संरक्षक आरवीएस रावत उपस्थित रहे।

    पढ़े: सम्मोहिनी धरा का मखमली पड़ाव

    रूप का रहस्य, रहस्य का रूप