Vishnu Ji Ki Aarti: इस आरती के बिना पूरी नहीं होती है भगवान विष्णु की पूजा, खुशियों से भर जाएगा जीवन
ज्योतिषियों की मानें तो वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के दूसरे गुरुवार पर कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में जगत के पालनहार भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाएगी। गुरुवार के दिन पूजा के बाद अन्न और धन का दान करना शुभ माना जाता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जगत के पालनहार भगवान मधुसूदन को गुरुवार का दिन बेहद प्रिय है। मई महीने के दूसरे गुरुवार के दिन मोहिनी एकादशी है। गुरुवार के दिन लक्ष्मी नारायण जी की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। महिलाएं सुख और सौभाग्य में वृद्धि के लिए गुरुवार के दिन व्रत रखती हैं।
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धार्मिक मत है कि गुरुवार के दिन लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने से शुभ कामों में सफलता मिलती है। साथ ही सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। इस शुभ अवसर पर पूजा, जप-तप और दान-पण्य किया जाता है। ज्योतिष बिगड़ी किस्मत को संवारने के लिए लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने की सलाह देते हैं।
अगर आप भी लक्ष्मी नारायण जी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन भक्ति भाव से भगवान विष्णु की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय विष्णु और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। जबकि, पूजा का समापन श्री लक्ष्मीनारायण आरती से करें।
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॥ श्री लक्ष्मीनारायण आरती ॥
जय लक्ष्मी-विष्णो। जय लक्ष्मीनारायण,
जय लक्ष्मी-विष्णो।जय माधव, जय श्रीपति,
जय, जय, जय विष्णो॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।
जय चम्पा सम-वर्णेजय नीरदकान्ते।
जय मन्द स्मित-शोभेजय अदभुत शान्ते॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।
कमल वराभय-हस्तेशङ्खादिकधारिन्।
जय कमलालयवासिनिगरुडासनचारिन्॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।
सच्चिन्मयकरचरणेसच्चिन्मयमूर्ते।
दिव्यानन्द-विलासिनिजय सुखमयमूर्ते॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।
तुम त्रिभुवन की माता,तुम सबके त्राता।
तुम लोक-त्रय-जननी,तुम सबके धाता॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।
तुम धन जन सुखसन्तित जय देनेवाली।
परमानन्द बिधातातुम हो वनमाली॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।
तुम हो सुमति घरों में,तुम सबके स्वामी।
चेतन और अचेतनके अन्तर्यामी॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।
शरणागत हूँ मुझ परकृपा करो माता।
जय लक्ष्मी-नारायणनव-मन्गल दाता॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।
आरती कुंजबिहारी की
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्री बनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद।।
टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
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