Mauni Amavasya 2026 Date: मौनी अमावस्या पर ग्रहों का दुर्लभ संयोग! शिववास योग में होगी महादेव की पूजा, मिलेगा अक्षय फल
माघ अमावस्या, जिसे मौनी अमावस्या भी कहते हैं, सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है, जिससे पापों से मुक् ...और पढ़ें

मौनी अमावस्या का धार्मिक महत्व

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अभी पढ़ेंधर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में माघ महीने का खास महत्व है। यह महीना देवी मां गंगा को समर्पित होता है। इसके लिए माघ महीने में रोजाना गंगा स्नान किया जाता है। वहीं, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन संगम तट पर अमृत स्नान किया जाता है।

माघ अमावस्या (Mauni Amavasya 2026) के शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद गंगाजल से देवों के देव महादेव का अभिषेक करते हैं। साथ ही भक्ति भाव से भगवान शिव की पूजा करते हैं।
धार्मिक मत है कि मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति विशेष को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। वहीं, पूजा, जप-तप और दान-पुण्य करने से व्यक्ति को अमोघ और अक्षय फल मिलता है। आइए, शुभ मुहूर्त, महत्व एवं पूजा विधि जानते हैं-
मौनी अमावस्या शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, माघ अमावस्या 18 जनवरी को देर रात 12 बजकर 03 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 19 जनवरी को देर रात 01 बजकर 21 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि से गणना होती है। इसके लिए 18 जनवरी को मौनी अमावस्या मनाई जाएगी।
मौनी अमावस्या योग
मौनी या माघ अमावस्या के दिन हर्षण योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इनमें शिववास और सर्वार्थ सिद्धि योग विशेष हैं। इन योग में गंगा स्नान करने से व्यक्ति को अमृत तुल्य फल की प्राप्ति होगी। साथ ही महादेव की कृपा बरसेगी।
मौनी अमावस्या पूजा विधि
मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्म बेला में उठें। इस समय सबसे पहले भगवान विष्णु का ध्यान करें। मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने की सलाह दी गई है। अत: गंगा स्नान करने तक मौन व्रत धारण करें। घर की साफ-सफाई करें। अगर गंगा नदी के निकटतम स्थान पर रहते हैं, तो गंगा स्नान करें। वहीं, आप घर पर भी गंगाजल युक्त पानी से स्नान कर सकते हैं। गंगा स्नान करने के बाद बहती जलधारा में काले तिल का प्रवाह अवश्य करें।
अब आचमन कर पीले रंग के वस्त्र धारण करें। इस समय सबसे पहले भगवान भास्कर को अर्घ्य दें और भगवान शिव का अभिषेक करें। इसके बाद दक्षिण दिशा में मुख कर पितरों का तर्पण करें। आप चाहे तो गंगाजल से पीपल के पेड़ का भी अभिषेक कर सकते हैं।
इससे देव और पितृ तृप्त होते हैं। इसके बाद पंचोपचार कर भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा करें। इस समय शिव और विष्णु चालीसा का पाठ और मंत्रों का जप करें। पूजा के अंत में आरती कर सुख-समृद्धि की कामना करें। पूजा के बाद अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान कर मौन व्रत खोलें।
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