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    Margashirsha Amavasya 2023: मार्गशीर्ष अमावस्या पर जरूर करें विष्णु चालीसा का पाठ, दूर होंगे सभी दुख और संताप

    धार्मिक मत है कि अमावस्या तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। अतः बड़ी संख्या में श्रद्धालु अमावस्या तिथि पर गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। अगर आप भी जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संताप से निजात पाना चाहते हैं तो मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि पर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 11 Dec 2023 01:33 PM (IST)
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    Margashirsha Amavasya 2023: मार्गशीर्ष अमावस्या पर जरूर करें विष्णु चालीसा का पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Margashirsha Amavasya 2023: सनातन धर्म में मार्गशीर्ष अमावस्या का विशेष महत्व है। इस वर्ष 12 दिसंबर को मार्गशीर्ष अमावस्या है। इस दिन गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करने का विधान है। शास्त्रों में वर्णित है कि अमावस्या और पूर्णिमा तिथि पर गंगा स्नान करने से अनजाने में किए हुए सारे पाप कट जाते हैं। मार्गशीर्ष अमावस्या पर स्नान-ध्यान करने के बाद साधक जगत के पालनहार भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं। धार्मिक मत है कि अमावस्या तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। अतः बड़ी संख्या में श्रद्धालु अमावस्या तिथि पर गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। साथ ही भगवान नारायण की पूजा करते हैं। अगर आप भी जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संताप से निजात पाना चाहते हैं, तो मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि पर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय विष्णु चालीसा का पाठ करें।

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    श्रीविष्णु चालीसा

    दोहा

    विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।

    कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

    चौपाई

    नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।

    प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

    सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।

    तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥

    शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।

    सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

    सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।

    सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

    पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।

    करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥

    धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।

    भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥

    आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।

    धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥

    अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।

    देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥

    कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।

    शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

    वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।

    मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥

    असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।

    हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥

    सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।

    तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

    देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।

    हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥

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    डिस्क्लेमर- 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी'।