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    Vinayak Chaturthi 2025: भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए करें इस स्तोत्र का पाठ, आर्थिक तंगी होगी दूर

    विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi 2025 Yoga) के शुभ अवसर पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इनमें शुक्ल और ब्रह्म योग प्रमुख हैं। शुक्ल और ब्रह्म योग में भगवान गणेश की पूजा करने से साधक पर भगवान गणेश की विशेष कृपा बरसेगी। साथ ही सुखों में वृद्धि होगी। भगवान गणेश की पूजा करने से कुंडली में बुध ग्रह भी मजबूत होता है।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 27 Feb 2025 06:59 PM (IST)
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    Vinayak Chaturthi 2025: विनायक चतुर्थी का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, 03 मार्च को विनायक चतुर्थी है। यह पर्व प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। विवाहित महिलाएं सुख और सौभाग्य में वृद्धि के लिए विनायक चतुर्थी के दिन व्रत रख भगवान गणेश की पूजा करती हैं।

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    विनायक चतुर्थी तिथि पर (Vinayak Chaturthi 2025 Date) भगवान गणेश की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही आर्थिक तंगी से भी मुक्ति मिलती है। अगर आप भी भगवान गणेश की कृपा पाना चाहते हैं, तो चतुर्थी तिथि पर भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ और गणेश मंत्र का जप करें।

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    भगवान गणेश के मंत्र

    1. ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।

    निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

    2. गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।

    द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥

    विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।

    द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌ ॥

    विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌ ।

    3. ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा॥

    4. दन्ताभये चक्रवरौ दधानं, कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।

    धृताब्जयालिङ्गितमाब्धि पुत्र्या-लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे॥

    5. ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्॥

    6. ॐ नमो ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्लीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी मम गृहे धनं देही चिन्तां दूरं करोति स्वाहा ॥

    7. ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

    8. ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।

    9. ॐ नमो सिद्धि विनायकाय सर्व कार्य कर्त्रेय

    सर्व विघ्न प्रशमनाय सर्वाजाय वश्यकर्णाय

    सर्वजन सर्वस्त्री पुरुष आकर्षणाय श्रीं ॐ स्वाहा..!!

    10. विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लंबोदराय सकलाय जगद्धितायं।

    नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।

    ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र

    ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम् ।

    ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् ॥

    सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए ।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

    त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित: ।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

    हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित: ।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

    महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित: ।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

    तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित: ।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

    भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए ।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

    शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक: ।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

    पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित: ।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

    इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,

    एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित: ।

    दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत् ॥

    संकटनाशन गणेश स्तोत्र

    प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम ।

    भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ॥

    प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम ।

    तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम ॥

    लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च ।

    सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ॥

    नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम ।

    एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥

    द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर: ।

    न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो ॥

    विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।

    पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥

    जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।

    संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥

    अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत ।

    तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥

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