Mangal Dev Katha: किसकी संतान हैं मंगल देव, बड़ी ही रोचक है जन्म की कथा
मंगल देव का रंग लाल है जिस कारण उन्हें अंगारक नाम से भी जाता जाता है। इनके स्वरूप की बात करें तो इनका वाहन भेड़ है और यह हाथों में त्रिशूल गदा पद्म और भाला धारण किए हुए हैं। मंगल नवग्रहों में सबसे पराक्रमी माने जाते हैं साथ ही वह शौर्य का प्रतीक भी हैं। वहीं मंगलवार का दिन मंगल देव के लिए समर्पित माना जाता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष दृष्टि की दृष्टि में नवग्रहों में से मंगल ग्रह को काफी महत्व दिया जाता है और कुंडली में इसकी स्थिति भी जातक के जीवन पर गहरा असर डालती है। इसी के साथ मंगल देव को युद्ध का देवता माना जाता है। लेकिन इस विषय में कम ही लोग जानते हैं कि मंगल देव (Mangal Dev) किसके पुत्र हैं और उनकी उत्पत्ति कैसे हुई। ऐसे में चलिए जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा।
अंधकासुर ने मचाई तबाही
मंगल देव के उत्पत्ति की कथा भी काफी रोचक है, जिसके अनुसार मंगल देव, भगवान शिव और भूदेवी के पुत्र माने जाते हैं। कथा के अनुसार, अंधकासुर नामक एक दैत्य ने अपनी कड़ी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। बदले में उसने यह वरदान मांगा कि जहां भी उसके रक्त की बूंदें गिरे, वहां उसी के जैसे सैकड़ो दैत्य पैदा हो जाएं। इस वरदान के मिलते ही अंधकासुर ने चारों ओर मबाही मचानी शुरू कर दी। जब उससे परेशान होकर पीड़ित लोग भगवान शिव की शरण में पहुंचे तब भगवान शिव ने अंधकासुर से भीषण युद्ध किया।
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भगवान शिव को आया पसीना
अंधकासुर से युद्ध करते-करते शिव जी के ललाट (माथे) से कुछ पसीने की बूंदें धरती पर गिर गईं। जहां महादेव का पसीना गिरा, वहां से धरती दो भागों में फट गई और उससे मंगल देव की उत्पत्ति हुई। जब भगवान शिव ने अंधकासुर का संघार किया, तो इस बीच अंधकासुर के रक्त की बूंदों को मंगल ग्रह ने अपने अंदर समाहित कर लिया, ताकि उसका रक्त धरती पर गिरकर और दैत्य पैदा न कर सके। ऐसे माना जाता है कि रक्त को अपने अंदर समाहित करने के कारण ही मंगल की धरती का रंग लाल है। वहीं पृथ्वी से उत्पन्न होने के कारण मंगल देव को भौम के नाम से भी जाना जाता है।
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