Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति पर भगवान सूर्य को लगाएं ये भोग, सुख-शांति से भर जाएगा घर
सनातन धर्म में मकर संक्रांति के दिन का बड़ा महत्व है। वहीं इस बार इस पावन दिन (Makar Sankranti 2025) पर कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है जिस वजह से इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। कहते हैं कि इस मौके पर सूर्य देव को उनकी कुछ प्रिय चीजों का भोग जरूर लगाना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मकर संक्रांति का पर्व हर साल बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस साल यह 14 जनवरी, 2025 को मनाया जाएगा। यह दिन हिंदुओं के लिए विशेष महत्व रखता है, जिसकी धूम चारों तरफ देखने को मिलती है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा का विधान है। कहते हैं कि इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करने और उन्हें उनका प्रिय भोग चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है, तो आइए मौके पर (Makar Sankranti 2025) सूर्य नारायण को किन चीजों का भोग लगाना चाहिए यहां जानते हैं -
भगवान सूर्य को लगाएं ये भोग (Makar Sankranti 2025 Bhog)
गुड़ से बनी मिठाई - मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य को गुड़ या फिर उससे बनी मिठाई का भोग लगाना अति शुभ माना जाता है। कहते हैं कि इस दिन सूर्य देव को गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाने से सुख-संपत्ति में वृद्धि होती है।
खिचड़ी - मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी (Makar Sankranti Khichadi Importance) खाने और सूर्य देव को उसका भोग लगाने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इसे भोग के रूप में अर्पित करने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है। साथ ही घर में बरकत आती है।
तिल के लड्डू - मकर संक्रांति पर भगवान सूर्य को तिल के लड्डू का भोग लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे जीवन में खुशहाली आती है। साथ ही रिश्ते मुधर होते हैं।
मकर संक्रांति 2025 शुभ मुहूर्त ( Makar Sankranti 2025 Date And Shubh Muhurat)
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल सूर्य मकर राशि में 14 जनवरी को सुबह 8 बजकर 44 मिनट में गोचर करेंगे। इस वजह से मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी, 2025 दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। वहीं, इसके एक दिन पहले लोहड़ी का त्योहार भव्यता के साथ मनाया जाएगा। इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है।
भगवान सूर्य मंत्र (Surya Dev Ke Pujan Mantra)
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
- ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।।
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