Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति पर करें गंगा स्तोत्र का पाठ, हर चिंता से मिलेगी मुक्ति
पूरे भारतवर्ष में मकर संक्रांति का पर्व बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस तिथि को पुण्य फलों की प्राप्ति के लिए बहुत ही खास माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन गंगा या फिर किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करने से साधक को पुण्य फलों की प्राप्ति हो सकती है। चलिए जानते हैं गंगा माता की कृपा प्राप्ति के लिए एक खास उपाय।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। इस साल मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025) का पर्व मंगलवार, 14 जनवरी को मनाया जा रहा है। यह वह दिन है जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में गोचर करते हैं। माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी में स्नान करने मात्र से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। इस खास अवसर पर आप गंगा जी की कृपा प्राप्ति के लिए गंगा स्तोत्र के पाठ भी कर सकते हैं, जिससे आपको काफी लाभ देखने को मिलते हैं।
मकर संक्रांति के दिन शुभ मुहूर्त (Makar Sankranti Shubh Muhurat)
मकर संक्रांति पुण्य काल - सुबह 07 बजकर 33 मिनट से शाम 06 बजकर 56 मिनट तक
मकर संक्रांति महा पुण्य काल - सुबह 07 बजकर 33 मिनट से सुबह 09 बजकर 45 मिनट तक
मकर संक्रांति का क्षण - सुबह 07 बजकर 33 मिनट तक
गंगा स्तोत्र
देवि सुरेश्वरि भगवति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरल तरंगे।
शंकर मौलिविहारिणि विमले मम मति रास्तां तव पद कमले ॥
भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥
हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥
कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवति कृततरलापांगे ॥
तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ॥
मकर संक्रांति के साथ गंगा स्नान के साथ-साथ जरूरतमंद लोगों में दान आदि करना भी काफी शुभ माना जाता है। इस दिन आप गरीबों में गुड़, तिल, खिचड़ी और गर्म कपड़े आदि का दान कर सकते हैं। ऐसा करने से साधक को जीवन में शुभ परिणाम देखने को मिलते हैं।
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पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे ।
इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥
अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः ॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥
येषां हृदये गंगा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकंता पंझटिकाभिः परमानंदकलितललिताभिः ॥
गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् ।
शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः त्व ॥
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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