Mahashivratri 2025: त्रिनेत्र से लेकर भांग-धतूरा तक, शिव जी से जुड़ी हर चीज देती है एक खास संदेश
इस साल महाशिवरात्रि का पर्व बुधवार 26 फरवरी 2025 को मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में इस दिन को बहुत ही खास माना गया है क्योंकि यह मान्यता है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन को सनातन धर्म में बड़े ही उत्साह और श्रद्धा भाव से साथ मनाया जाता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान शिव का स्वरूप सभी देवताओं में सबसे निराला है। भगवान शिव का कैलाश पर्वत पर निवास करना या फिर नंदी जी की सवारी करने के पीछे सभी में मनुष्य जाति के लिए एक खास संदेश छिपा हुआ है। आज हम आपको शिव जी से जुड़े कुछ ऐसे ही संदेश बताने जा रहे हैं, जो मानव मात्र को प्रेरणा देने का भी काम करते हैं, साथ ही यह संकेत प्रकृति से भी जरूरी रूप से जुड़े हुए हैं।
क्या संकेत देता है कैलाश पर निवास
जहां अन्य देवी-देवता स्वर्ग में निवास करते हैं, वहीं भगवान शिव ने कैलाश को अपने निवास स्थान के रूप में चुना है। यह उनके प्रकृति से जुड़े होने का संकेत देता है। आज मानव प्रकृति के महत्व को भूलता जा रहा है और अपने मतलब के लिए उसे नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसे में आपको शिव जी के प्रकृति प्रेम से शिक्षा जरूर लेनी चाहिए।
किसका प्रतीक हैं नंदी
भगवान शिव नंदी जी की सवारी करते हैं। असल में नंदी को धर्म, शक्ति, प्रतीक्षा और नैतिकता के संरक्षक का प्रतीक माना जाता है। साथ ही नंदी से आप भक्ति भावना भी सीख सकते हैं, क्योंकि वह शिव जी के आदेश के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
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क्यों चढ़ाता है भांग-धतूरा
आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा कि भगवान शिव को भांग और धतूरा जैसी चीजें क्यों अर्पित की जाती हैं, जबकि भांग और धतूरा की प्रकृति तो कड़वी या फिर जहरीली होती है। यहां भगवान शिव को भांग और धतूरा जैसी चीजें अर्पित करने का अर्थ है कि हम अपने जीवन की सभी बुराइयों और कड़वाहट का त्याग कर रहे हैं, जिससे हमारा जीवन निर्मल हो सके।
तीसरे नेत्र का अर्थ
तीन नेत्र होने के कारण शिवजी को त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है। यहां तीसरे नेत्र का अर्थ है जागरुकता। मनुष्य के पास भी तीसरी आंख होती है, जिससे वह उन चीजों का अनुभव कर सकता है जिन्हें सामान्य दृष्टि से देखा मुश्किल है। लेकिन इस नेत्र को आत्मज्ञान और आध्यात्मिकता के सहारे ही जागृत किया जा सकता है।
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