Mahalaya के दिन होता है मां दुर्गा का धरती पर होगा आगमन, जानें क्या है इसका धार्मिक महत्व
पंचांग के अनुसार साल में 04 बार नवरात्र का पर्व मनाया जाता हैं जिनमें से दो गुप्त नवरात्र होती हैं और दो प्रकट नवरात्र। हिंदू धर्म में आश्विन माह की प्रकट नवरात्र यानी शारदीय नवरात्र को विशेष महत्व दिया गया है। इस अवधि के दौरान आने वाला महालया पर्व भी विशेष महत्व रखता है जिसे मां दुर्गा से जोड़कर देखा जाता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। नवरात्र की अवधि को हिंदू धर्म में काफी महत्वपूर्ण माना गया है। इसी अवधि में मनाया जाने वाला महालया (Mahalaya 2024 Date) भी विशेष महत्व रखता है। इस बार गुरुवार, 03 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि नवरात्र में महालया कब मनाया जाएगा और इसका क्या धार्मिक महत्व है।
कब है महालया (Mahalaya 2024 Date and time)
हर साल आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या तिथि, जो पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी होता है, उसी पर महालया मनाया जाता है। ऐसे में हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल पितृ पक्ष का आखिरी दिन आज यानी 02 अक्टूबर को है। इसलिए महालया का पर्व आज मनाया जा रहा है।
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महालया का महत्व (Mahalaya 2024 Importance)
अगल में महालया पितृ पक्ष श्राद्ध की अवधि का 16वां दिन होता है, इसलिए इसे पितृ पक्ष के अंत के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। महालया को एक ऐसा दिन माना गया है, जब मां दुर्गा का धरती पर आगमन होता है और माता के स्वागत के लिए इस दिन पूजा-अर्चना की जाती है। वहीं इस दिन को बुराई पर अच्छाई के रूप में भी देखा जाता है। इसके अगले दिन शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है और कलश स्थापना की जाती है। यह पर्व मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में अधिक लोकप्रिय है।
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जरूर करें ये पाठ
आप माता रानी की कृपा के लिए महालया के विशेष दिन पर दुर्गा सप्तशती श्लोक का पाठ कर सकते हैं। इससे आपको जीवन में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
दुर्गा सप्तशती श्लोक
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्य दुःख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता।।
सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते॥
शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते॥
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते॥
रोगानशेषानपंहसि तुष्टारुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हि आश्रयतां प्रयान्ति॥
सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यम् अस्मद् वैरि विनाशनम्॥
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