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    आखिर क्यों हनुमान जी को कर्ण पर आया था क्रोध और कैसे कृष्णजी ने किया था शांत? पढ़ें पौराणिक कथा

    Updated: Wed, 16 Jul 2025 02:02 PM (IST)

    अर्जुन और कर्ण दोनों ही श्रेष्ठ धनुर्धर थे। महाभारत की युद्ध भूमि में दोनों के बीच भयंकर युद्ध भी हुआ। दोनों ही एक-दूसरे पर भारी पड़ रहे थे। कर्ण की वीरता का प्रमाण इस बात से ही मिलता है कि अगर हनुमान जी अर्जुन के रथ की रक्षा न कर रहे होते तो वह अवश्य ही क्षतिग्रस्त हो जाता।

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    कृष्णजी ने हनुमान जी को कैसे किया शांत? (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर हनुमान जी महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ की ध्वजा में विराजमान थे। उन्होंने रथ की रक्षा की और उसे अभेद्य बनाने का काम किया। युद्ध के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब हनुमान जी को बहुत क्रोध आया और वह अर्जुन को मारने के लिए उद्यत हो गए थे। चलिए जानते हैं यह प्रसंग।

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    हनुमान जी को कब आया क्रोध

    महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन और कर्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस दौरान जब कर्ण, अर्जुन पर लगातार बाणों की बौछार करने लगा। लेकिन रथ की ध्वजा में हनुमान जी विराजमान होने के कारण कर्ण, अर्जुन का कुछ नहीं बिगाड़ पाया।

    इससे अर्जुन बहुत क्रोधित हो गया और नियमों के विरुद्ध सारथी की भूमिका निभा रहे कृष्ण जी पर बाण चलाने लगा। इससे भगवान का सुरक्षा कवच क्षतिग्रस्त हो गया। यह सारा दृश्य हनुमान जी भी देख रहे थे, जिससे वह बहुत क्रोधित हो गए।

    (Picture Credit: Freepik)

    श्रीकृष्ण ने करवाया हनुमान जी को शांत

    हनुमान जी ने बहुत तेज गर्जना की और कर्ण को मारने के लिए उद्यत हो गए। इससे दोनों पक्ष की सेना में हाहाकार मच गया। हनुमान जी क्रोधित दृष्टि से कर्ण को देखने लगे। तब स्थिति को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने हस्तक्षेप किया और हनुमान जी को शांत होने के लिए कहा।

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    (Picture Credit: canva)

    समझाइ ये बात

    भगवान श्रीकृष्ण ने हनुमान जी को समझाया कि अगर वह ज्यादा देर तक कर्ण पर अपनी दृष्टि डालेंगे, तो कर्ण उसे सहन नहीं कर सकेगा। साथ ही यह भी कहा कि यह त्रेतायुग नहीं है और कोई साधारण मनुष्य आपकी क्रोध भरी दृष्टि को नहीं झेल सकता।

    इसके बाद शांत होकर हनुमान जी दोबारा ध्वजा पर विराजमान हो गए। इसलिए यह कहा जा सकता है कि अगर भगवान श्रीकृष्ण बीच में न आए होत, तो उस समय कर्ण का अंत निश्चित था।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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