Mahabharata: अर्जुन को कैसे मिला था गांडीव धनुष, एक साथ भेद सकता था कई लक्ष्य
महाभारत ग्रंथ में अर्जुन को श्रेष्ठ धनुर्धर माना गया है। अर्जुन के गांडीव धनुष की कई विशेषताएं थीं। अर्जुन को गांडीव मिलने के पीछे कई कथाएं मिलती हैं। आज हम आपको अर्जुन के गांडीव की खासियत और अर्जुन को यह धनुष प्राप्त होने से जुड़ी कथा बताने जा रहे हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत ग्रंथ में कई महान योद्धाओं और उनके अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन किया गया है। कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया यह युद्ध बहुत ही भीषण था। अंत में पांडवों की जीत हुई। सभी योद्धाओं के पास कोई-न-कोई खास हथियार भी था। इसी प्रकार अर्जुन के गांडीव नामक धनुष था, जिसमें कई विशेषताएं थी।
ये थी खासियत
अर्जुन का गांडीव धनुष इतना शक्तिशाली था कि इसे कोई और अस्त्र या शस्त्र नष्ट नहीं कर सकता था। इसकी प्रत्यंचा चढ़ाने पर ऐसी ध्वनि या टंकार पैदा होती थी, जिसकी गूंज पूरी युद्धभूमि में सुनाई देती थी। गांडीव के साथ ही अर्जुन को एक ऐसा तरकश भी प्राप्त था, जिसके तीर कभी खत्म नहीं होते थे।
इसलिए इसे अक्षय तरकश के रूप में भी जाना जाता है। गांडीव धनुष से निकला एक तीर कई तीरों का सामना करने और एक-साथ कई लक्ष्य भेदने में सक्षम था। इतना ही नहीं अर्जुन के गांडीव से पाशुपतास्त्र, नारायणास्त्र और ब्रह्मास्त्र जैसे अस्त्रों को भी नष्ट किया जा सकता था।
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मिलती है ये कथा
कौरव और पांडवों के बीच जब राज्य बंटवारे को लेकर कलह चल रही थी। तभी मामा शकुनि ने धृतराष्ट्र को यह सुझाव दिया कि वह पांडवों को खांडवप्रस्थ सौंप दें, जिससे वह शांत हो जाएं। खांडवप्रस्थ एक जंगल के समान ही था।
पांडवों के समक्ष इस जंगल को एक नगर बनाने की बड़ी चुनौती थी। तब भगवान श्रीकृष्ण विश्वकर्मा का आह्वान करते हैं। विश्वकर्मा प्रकट होते हैं और भगवान श्रीकृष्ण को सुझाव देते हैं कि वह मयासुर से नगर बसाने के लिए सहायता मांग सकते हैं। क्योंकि मयासुर भी यहां एक नगर बसाना चाहते थे।
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मयासुर हुआ प्रसन्न
जब मयासुर को यह पता चला कि पांडव खांडवप्रस्थ में एक नगर बसाना चाहते हैं, तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। वह श्रीकृष्ण, अर्जुन एवं विश्वकर्मा को एक खंडहर में ले जाता है और उन्हें वहां स्थित एक रथ दिखाने लगता है। मयासुर ने श्रीकृष्ण को बताया कि यह सोने का रथ पूर्वकाल के महाराजा सोम का हुआ करता था। इस रथ की खासियत है कि यह व्यक्ति को उसकी मनचाही जगह पर ले जा सकता है। साथ ही मयासुर ने रथ में रखे अस्त्र-शस्त्र भी उन्हें दिखाए।
ऐसे मिला था गांडीव
रथ में एक गदा रखी थी, जो कौमुद की गदा थी। इस गदा को भीमसेन के अलावा और कोई उठा नहीं सकता था। इसी के साथ मयासुर ने रथ में रखा गांडीव धनुष भी दिखाया और कहा कि इस दिव्य धनुष को दैत्यराज वृषपर्वा ने भगवान शंकर की आराधना से प्राप्त किया था।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने वह धनुष उठाकर अर्जुन को दे दिया और कहा कि यह धनुष तुम्हारे लिए उपयुक्त रहेगा। मयासुर ने अर्जुन को एक अक्षय तरकश भी दिया, जिसके बाण कभी खत्म नहीं होते थे। इसके बाद में भगवान विश्वकर्मा और मयासुर ने मिलकर इन्द्रप्रस्थ नगर को बनाने का काम किया।
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