Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Mahabharat: कर्ण के पूर्वजन्म से जुड़ा है कवच-कुंडल का राज, जो समय आने पर नहीं बचा सके उनकी जान

    Updated: Thu, 05 Sep 2024 02:30 PM (IST)

    महाभारत का युद्ध भीष्म पितामह से लेकर अर्जुन तक कई योद्धाओं ने लड़ा था। इन्ही में से एक कर्ण भी थे। माना जाता है कि कर्ण की एक ऐसे योद्धा थे जो युद्ध में अर्जुन को टक्कर दे सकता था। कर्ण को जन्म से ही कवच और कुंडल प्राप्त थे जिसकी कथा कर्ण के पूर्वजन्म से जुड़ी हुई है। चलिए जानते हैं वह कथा।

    Hero Image
    suryaputra Karn story कर्ण के पूर्वजन्म से जुड़ा है कवच-कुंडल का राज।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कर्ण असल में कुंती का ही पुत्र था और सभी पांडवों में सबसे बड़ा भी था। लेकिन यह बात केवल कुंती ही जानती थी। महाभारत के आदि पर्व में कर्ण के पूर्वजन्म की कथा का वर्णन मिलता है। साथ ही इसमें यह भी वर्णन मिलता है कि आखिर क्यों जरूरत पड़ने पर कर्ण के दिव्य कवच और कुंडल उसके काम नहीं आ सके। यह कथा बड़ी ही

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नर-नारायण से मांगी सहायता

    महाभारत के आदि पर्व में वर्णित कथा के अनुसार, दुरदु्म्भ (दम्भोद्भवा) नाम के एक राक्षस ने देवताओं की नाक में दम किया हुआ था। इस राक्षस को वरदान प्राप्त था कि उसका वध केवल वही कर सकता है, जिसने हजार साल तपस्या की हो। साथ ही उसे सूर्य देव से 100 दिव्य कुंडल व कवच का वरदान भी प्राप्त था, जिसे तोड़ने वाले की मृत्यु हो जाती। इससे परेशान होकर सभी देवता, भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। तब श्री हरि ने सुझाव दिया कि वह नर और नारायण से सहायता मांगे, जो भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे। ऐसे में सभी देवता नर और नारायण से सहायता मांगने पहुचे।

    कई वर्षों तक चला युद्ध

    देवताओं की गुहार सुनकर नर और नारायण ने राक्षस से युद्ध का फैसला किया। सबसे पहले नर ने राक्षस से युद्ध किया और इस दौरान नारायण तपस्या करने लगे। कई दिनों तक युद्ध के बाद नर ने राक्षस का कवच तोड़ दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन नारायण की तपस्या के फल से नार पुनः जीवित हो गए। यह क्रम लगातार चलता रहा औ इस प्रकार नर-नारायण ने मिलकर राक्षस के 99 कवच तोड़ दिए।

    इसके बाद दुरदु्म्भ डरकर सूर्य देव के पीछे जा छुपा। तब सूर्य देव ने नर-नारायण से शरणागत की रक्षा करने की प्रार्थना की। तब नर-नारायण ने सूर्य देव से कहा कि यदि आप इसकी रक्षा करेंगे, तो इसका परिणाम आपको भी भुगतना होगा। आपके तेज से यह राक्षस अगले जन्म में कवच-कुंडल के साथ जन्म लेगा, लेकिन जब उसे जरूरत होगी तो वह उसके किसी काम नहीं आएंगे।

    यह भी पढ़ें - Mahabharat Karna: महाभारत के कर्ण से जुड़ी ये बातें नहीं जानते होंगे आप

    मिला ये परिणाम

    नर और नारायण के कहे अनुसार, सूर्य के तेज से राक्षस का ही अगले जन्म में कर्ण के रूप में जन्म लिया और उसे वही दिव्य कवच और कुंडल प्राप्त थे। लेकिन महाभारत के युद्ध से पहले इंद्र देव ने ब्राह्मण का रूप धर कर्ण से वह कवच-कुंडल मांग लिए, जिससे युद्ध में अर्जुन के हाथों कर्ण की मृत्यु हो गई।

    यह भी पढ़ें - Radha Ashtami 2024: पहाड़ी पर स्थित है राधा रानी का ये मनमोहक मंदिर, जानें इससे जुड़े रोचक तथ्य

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।