गांधारी के इस श्राप से खत्म हो गया था श्रीकृष्ण का वंश, इस यदुवंशी ने दोबारा बसाया ब्रजमंडल
महाभारत की कथा में न केवल युद्ध बल्कि और भी ऐसी घटनाएं घटी जो मानवमात्र को प्रेरित करने के साथ-साथ चकित भी कर देती हैं। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को गांधारी ने श्राप दिया था कि उनके समस्त कुल का नाश हो जाएगा लेकिन वहीं एक यदुवंशी ऐसा भी था जो जीवित बचा। चलिए जानते हैं उनके बारे में।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान श्रीकृष्ण, प्रभु श्रीहरि के आठवें अवतार माने गए हैं। इनका अवतार द्वापर युग में प्रजा को कंस के अत्याचरों से मुक्ति दिलाने के लिए यदुवंश में हुआ था। आज हम आपको एक ऐसे यदुवंशी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने ब्रजमंडल की पुन: स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई थी। चलिए जानते हैं उस राजा के बारे में।
मिला था ये श्राप
महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, जब महाभारत का भीषण युद्ध समाप्त हुआ, तो इस युद्ध में गांधारी और धृतराष्ट्र सभी 100 पुत्र मारे गए। इसके लिए गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को दोषी माना, क्योंकि वह जानती थी कि अगर श्रीकृष्ण चाहते, तो इस युद्ध को होने से रोक सकते थे। तब गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है, उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश हो जाएगा।
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बचा केवल ये यदुवंशी
इस श्राप के परिणाम स्वरूप यादुवंश के सभी लोग आपस में लड़कर मर गए। लेकिन एक ऐसा यदुवंशी था, जो जीवित रहा वह था वज्रनाभ। यह भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र थे। वज्रनाभ द्वारका के अंतिम शासक थे। द्वारिका के समुद्र में डूब जाने के बाद अर्जुन की सहायता से वज्रनाभ अन्य लोगों के साथ हस्तिनापुर आ गए।
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भगवान श्रीकृष्ण ने की थी ये घोषणा
भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं इन्हें मथुरा का राजा बनाने की घोषणा की थी। वज्रनाभ ने महाराज परीक्षित और महर्षि शांडिल्य के सहयोग से ब्रजमंडल की पुन: स्थापना की थी और कई मंदिरों आदि का निर्माण करवाया। इसलिए वज्रनाभ को ब्रज का पुनः निर्माता भी कहा जाता है। इसका वर्णन विष्णु पुराण के 37वें अध्याय में मिलता है -
त्वमर्जुनेन सहितो द्वारवत्यां तथा जनम।
गृहीत्वा याहि वज्रश्च यदुराजो भविष्यति।।
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