Mahabharat Katha: इन शर्तों के बिना कुछ और हो सकती थी महाभारत की कथा
महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है जो हमें सिखाता है कि व्यक्ति को अपने जीवन में क्या गलतियां नहीं करनी चाहिए अन्यथा उसके जीवन में मुसीबतों का पहाड़ टूट सकता है। इस काल में ऐसी कई घटनाएं घटी जिन्होंने महाभारत के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी के साथ महाभारत के पात्रों द्वारा रखी गई कुछ शर्तों का भी युद्ध में बड़ा हाथ रहा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत युद्ध को इतिहास के सबसे भीषण युद्धों में से एक माना जाता है, जो द्वापर युग में लड़ा गया था। यह युद्ध एक ही वंश के कौरवों व पांडवों के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में कई घटनाओं के साथ-साथ कुछ शर्तों का भी हाथ रहा। तो चलिए जानते हैं इस बारे में।
गंगा ने शांतनु के सामने रखी शर्त
गंगा ने राजा शांतनु के सामने यह शर्त रखी थी कि वह कभी भी उससे किसी तरह का कोई सवाल करेंगे। इसी के चलते गंगा ने अपने 7 नवजात पुत्रों को एक-एक करके नदी में प्रवाहित कर दिया। लेकिन अपने वचन के कारण राजा चुप रहे। परंतु जब गंगा ने अपने आठवें पुत्र को नदी में बहाने का प्रयास किया, तब राजा से रहा नहीं गया और उन्होंने गंगा को रोक दिया। इसपर गंगा अपनी आठवीं संतान को राजा को सौंपकर चली गई। राजा ने अपने पुत्र को देवव्रत नाम दिया, जो आगे चलकर महाभारत युद्ध का एक अहम हिस्सा बना।
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देवव्रत कहलाए भीष्म
राजा शांतनु, निषादराज की पुत्री सत्यवती से विवाह करना चाहते थे। लेकिन निषादराज ने शांतनु के आगे यह शर्त रखी कि मेरी कन्या के गर्भ से उत्पन्न संतान को ही आप राज्य का उत्तराधिकारी बनाएंगे। अपने पिता की खुशी के लिए देवव्रत ने जीवनभर विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली, जिस कारण उनका नाम भीष्म पड़ गया। अगर निषादराज द्वारा यह शर्त न रखी गई होती है, तो महाभारत की कथा कुछ और हो सकती थी।
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इस शर्त पर द्रौपदी को लगाया दांव पर
आम से दिखने वाले चौसर के खेल ने महाभारत जैसे भीषण युद्ध की नींव रखी। जब पांडवों और कौरवों के बीच यह खेल खेला जा रहा था, तब युधिष्ठिर ने अपनी संपत्ति से लेकर अपने भाइयों तक को एक-एक करके सब कुछ दांव पर लगा दिया।
जब उनके पास दांव पर लगाने को कुछ नहीं बचा, तो दुर्योधन ने उन्हें द्रौपदी को दांव पर लगाने को उकसाया और युधिष्ठिर के सामने यह शर्त रखी कि अगर पासे के अंक युधिष्ठिर की इच्छा के अनुसार आते हैं, तो वह उनको दांव पर लगी हर एक चीज वापस कर देंगे। इस शर्त को मानते हुए युधिष्ठिर ने द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया और वह अपना सब कुछ हार बैठे। अगर युधिष्ठिर, दुर्योधन की इस शर्त को नहीं मानते, तो आज महाभारत की कथा कुछ और होती।
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