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    महाभारत काल में कहां हुई थी हनुमान जी और भीम की मुलाकात, बजरंगबली ने इस तरह तोड़ा था घमंड

    Updated: Thu, 17 Apr 2025 06:32 PM (IST)

    महाभारत ग्रंथ में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र मिलता है जो व्यक्ति को आश्चर्य में डाल सकते हैं। आज हम आपको महाभारत में वर्णित एक ऐसे प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें यह वर्णन मिलता है कि महाभारत काल में एक बार भीमसेन और हनुमान जी की भेंट हुई थी। यह प्रसंग बढ़ा ही रोचक है चलिए जानते हैं इसके बारे में।

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    बलवान होकर भी क्यों हार गए भीम?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत ग्रंथ (Mahabharat Katha) ग्रंथ में मुख्य रूप से कौरव और पांडवों के बीच हुए युद्ध का वर्णन मिलता है। साथ ही इस ग्रंथ में ऐसी कई कथाएं भी मिलती हैं, जो सबक देने के साथ-साथ चकित भी करती हैं। आज हम आपको महाभारत में वर्णित एक ऐसा घटना के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें यह बताया गया है कि हनुमान जी ने किस तरह भीमसेन का घंमड तोड़ा थाय़

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    मिलती है यह कथा

    प्रसंग के अनुसार, एक बार भीम, द्रौपदी के लिए फूल लेने गंधमादन पर्वत पर जा रहे थे। इस दौरान उन्हें रास्ते में हनुमान जी लेटे हुए मिल गए। भीम ने उन्हें एक साधारण वानर समझते हुए, रास्ते से हटने को कहा। इसपर हनुमान जी बोले कि मैं अस्वस्थ हूं और खड़ा नहीं हो सकता।

    इसपर भीमसेन को क्रोध आया और वह हनुमान जी से बोले कि तुम जानते हो कि मैं कौन हूं? मैं कुरुवंश का वीर और कुंती का बेटा हूं। तुम मेरे रास्ते से हट जाओ और मुझे आगे जाने दो।

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    पूंछ तक नहीं हिला सके भीम

    तब हनुमान जी बोले कि तुम मुझे लांघकर चले जाओ। तब भीमसेन ने कहा कि किसी को लांघकर जाना उचित नहीं होगा। तब हनुमान जी कहते हैं “हे वीर! शांत हो जाओ! अगर तुम मुझे लांघ नहीं सकते, तो मेरी पूंछ हटाकर मुझे एक ओर कर दो और आगे बढ़ जाओ।” ऐसे में

    भीमसेन हनुमान जी की पूंछ को एक हाथ पकड़कर हटाने की कोशिश करते हैं, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि वह जैसे वीर भी पूंछ को हिला तक नहीं पाए। तब भीम ने दोनों हाथों की मदद से खूब जोर लगाकर पूंछ को हटाने की कोशिश की, लेकिन तब भी असफल रहे।

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    (Picture Credit: Freepik) 

    हनुमान जी ने दिया ये आशीर्वाद

    इस घटना से भीम बहुत लज्जित हुए और उसका सारा गर्व चूर हो गया। तब भीम नम्र होकर वानर से बोले कि “मुझे क्षमा करें। तब हनुमान जी ने उन्हें अपने असली स्वरूप से अवगत करवाया। इसपर भीमसेन ने हनुमान को दंडवत प्रणाम किया और कहा कि ''मुझसे बढ़कर भाग्यवान कौन होगा, जिसे साक्षात आपके दर्शन प्राप्त हुए।” तब हनुमान जी ने भीम को यह आशीर्वाद दिया कि युद्ध के समय, मैं तुम्हारे भाई अर्जुन के रथ पर उड़ने वाली ध्वजा पर विद्यमान रहूंगा।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।