Magh Month 2024: माघ माह में क्या करें और क्या न करें? यहां जानें
Magh Month 2024 माघ महीने की शुरूआत 26 जनवरी से होगी। धार्मिक मान्यता है कि माघ माह में किए गए कार्यों का फल कई जन्मों तक मिलता है। इसलिए इस महीने में जरूरतमंदों की मदद अवश्य करनी चाहिए। वहीं इस महीने (Magh) को लेकर कई सारे नियम बनाए गए हैं जिनका पालन जरूर करना चाहिए। तो आइए यहां जानते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली।Magh Month 2024: सनातन धर्म में माघ महीने का विशेष महत्व है। माघ माह में स्नान, दान और ध्यान करना शुभ माना जाता है। इस साल माघ माह की शुरूआत 26 जनवरी से होगी। मान्यता है कि माघ माह में किए गए कार्यों का फल कई जन्मों तक मिलता है।
इसलिए इस महीने में जरूरतमंदों की मदद अवश्य करनी चाहिए। वहीं इस महीने को लेकर कई सारे नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन जरूर करना चाहिए। तो आइए जानते हैं।
माघ माह में क्या न करें और क्या करें?
- माघ माह में भगवान सूर्य के साथ-साथ भगवान विष्णु की पूजा का भी विधान है।
- इस पूरे माह किए जाने वाले काम का शुभ फल मिलता है।
- माघ माह में प्रतिदिन गीता का पाठ फलदायी माना गया है।
- माघ के महीने में पवित्र नदियों में स्नान जरूर करना चाहिए।
- माघ महीने में तुलसी पूजन करना चाहिए।
- इस माह गर्म कपड़ों का दान करना अच्छा माना जाता है।
- इस महीने तामसिक चीजों का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
- माघ के महीने में मूली का सेवन भी पूर्णता वर्जित माना गया है।
- इस महीने में गंगा स्नान करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
- इस पूरे महीने सात्विक चीजों से जुड़ा रहना चाहिए।
- इस माह लड़ाई-झगड़े से दूर रहना चाहिए।
- माघ में किसी भी व्यक्ति के बारे में बुरा बोलने से बचना चाहिए।
माघ माह में करें भगवान कृष्ण की इस स्तुति का पाठ
भये प्रगट कृपाला दीन दयाला,यशुमति के हितकारी, हर्षित महतारी रूप निहारी, मोहन मदन मुरारी।
कंसासुर जाना अति भय माना, पूतना बेगि पठाई, सो मन मुसुकाई हर्षित धाई, गई जहां जदुराई।
तेहि जाइ उठाई ह्रदय लगाई, पयोधर मुख में दीन्हें, तब कृष्ण कन्हाई मन मुसुकाई, प्राण तासु हरि लीन्हें।
जब इन्द्र रिसाये मेघ बुलाये, वशीकरण ब्रज सारी, गौवन हितकारी मुनि मन हारी, नखपर गिरिवर धारी।
कंसासुर मारे अति हंकारे, वत्सासुर संहारे, बक्कासुर आयो बहुत डरायो, ताकर बदन बिडारे।
अति दीन जानि प्रभु चक्रपाणी, ताहि दीन निज लोका, ब्रह्मासुर राई अति सुख पाई, मगन हुए गए शोका।
यह छन्द अनूपा है रस रूपा, जो नर याको गावै, तेहि सम नहिं कोई त्रिभुवन मांहीं, मन-वांछित फल पावै।
दोहा- नन्द यशोदा तप कियो, मोहन सो मन लाय तासों हरि तिन्ह सुख दियो, बाल भाव दिखलाय।
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