Magh Mela 2026: माघ मेले में संगम स्नान का बना रहे हैं मन, तो इन नियमों का जरूर रखें ध्यान
ऐसी मान्यता है कि माघ मेले (Magh Mela 2026) के दौरान संगम में पवित्र स्नान करने से साधक के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। अगर ...और पढ़ें

Magh Mela 2026 Niyam in hindi

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धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल पौष पूर्णिमा से प्रयागराज के त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम) पर माघ मेले का आयोजन होता है, जो महाशिवरात्रि तक चलता है। ऐसे में साल 2026 में यह आयोजन 3 जनवरी से होने जा रही है, जो 15 फरवरी 2026 तक चलेगा। धार्मिक दृष्टि से त्रिवेणी संगम में स्नान का विशेष महत्व माना गया है। आज हम आपको इससे जुड़े कुछ जरूरी नियम बताने जा रहे हैं।
त्रिवेणी संगम में स्नान का महत्व
त्रिवेणी संगम अर्थात गंगा, यमुना सरस्वती (अदृश्य रूप से) नदी का मिलन, जिसमें स्नान का अत्यधिक महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रिवेणी संगम में स्नान से साधक के पाप धुल जाते हैं और उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से भी मुक्ति (मोक्ष) मिलती है।
पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी और माघी पूर्णिमा जैसी तिथियों (Auspicious Days) पर संगम में स्नान का विशेष महत्व होता है, जो शाही स्नान के रूप में जाना जाता है। इससे साधक को अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य फल मिलते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु संगम स्नान का लाभ उठाने हेतु प्रयागराज पहुंचते हैं।

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ये हैं जरूरी नियम
- माघ मेले में पहले दिन से ही स्नान और व्रत का संकल्प लेना चाहिए और रोजाना सूर्योदय से पहले पवित्र संगम में स्नान (Holy Bath) करना चाहिए।
- इस पूरी अवधि में साधक को सात्विक भोजन और यदि संभव हो तो एक समय भोजन करना चाहिए।
- कल्पवास का संकल्प लेने वाले साधकों के लिए तला हुआ, गरिष्ठ यानी भोजन (Heavy Meals) जैसे तेल, घी, मक्खन, मलाई, चीनी, और मूली-धनिया वर्जित माना गया है।
- इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- इस अवधि में पुण्य अवधि में आपको झूठ व कटु वचन बालने से बचना चाहिए और लालच, घृणा, जलन जैसे भाव को अपने अंदर लाने से बचना चाहिए।
- इन सभी बातों का ध्यान रखने पर ही आपको माघ मेले में पवित्र स्नान का लाभ मिल सकता है।
इन कार्यों से मिलेगा लाभ
माघ मेले में तिल, अन्न और वस्त्रों का दान करना काफी शुभ माना गया है। साथ ही इस अवधि में संतों के प्रवचन सुने, योग-ध्यान, और कल्पवास (एक महीने नदी किनारे रहकर तपस्या करना) से भी साधक को पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से आत्म-शुद्धि होती है और साधक मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है।
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