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    Lord Shiva: भगवान शिव ने क्यों किया था विषपान? जानें नीलकंठ कहलाने की पौराणिक कथा

    Updated: Mon, 21 Apr 2025 03:14 PM (IST)

    हिंदू धर्म में भगवान शंकर की पूजा बहुत शुभ मानी जाती है। कहते हैं कि भगवान शंकर (Shiv Pujan) की पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसके साथ ही भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। वहीं आज हम इस आर्टिकल में जानेंगे कि आखिर देवों के देव महादेव ने विष क्यों पिया था और उन्हें नीलकंठ (Neelkanth Katha in hindi) क्यों कहा जाता है?

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    Lord Shiva: भगवान शिव को नीलकंठ क्यों कहा जाता है?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है। उनकी महिमा अपार है, जिसे लेकर कई सारी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण कथा है उनके विषपान करने की है, जिस वजह से उन्हें 'नीलकंठ' के नाम से भी जाना जाता है। यह कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, तो आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि भगवान शिव ने विषपान क्यों किया और वे नीलकंठ (Nilkanth) कैसे कहलाए?

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    समुद्र मंथन

    पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सभी देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन (Samudra Manthan)किया। इस मंथन का उद्देश्य अमृत कलश का पाना था। जैसे ही समुद्र का मंथन शुरू हुआ, तो उसमें से एक के बाद एक कई अद्भुत चीजें निकलीं। इनमें कामधेनु गाय, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि जैसी दिव्य वस्तुएं और रत्न शामिल थे।

    हालांकि, मंथन के दौरान एक ऐसा भयानक विष भी निकला, जिसकी धधकती ज्वाला से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। यह विष इतना शक्तिशाली था कि इसकी एक बूंद भी सृष्टि का विनाश करने में सक्षम थी।

    विष का भयानक प्रभाव

    देवता और असुर दोनों ही इस विष के भयानक प्रभाव से भयभीत हो गए थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस विष (Neelkanth Story In Hindi) का क्या किया जाए, क्योंकि किसी के भी अंदर इसे सहन करने की क्षमता नहीं थी।

    तब सृष्टि को बचाने के लिए सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान शिव की शरण में जाने की सलाह दी, क्योंकि केवल वे ही इस विष का सामना कर सकते थे।

    शिव जी ने विष से पूरे जगत की रक्षा

    देवता और असुर तुरंत कैलाश पर्वत पहुंचे और भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस विष से पूरे जगत की रक्षा करें। भोलेनाथ ने तुरंत सृष्टि को बचाने के लिए उस भयानक विष को पी लिया, लेकिन उसे अपने कंठ से नीचे उतरने नहीं दिया। उस विष के प्रभाव से शिव जी का कंठ नीला पड़ गया। इसी कारण भगवान शिव को 'नीलकंठ' के नाम से भी जाना जाता है।

    करुणा का प्रतीक

    इसके बाद पूरे जगत में फिर शांति की स्थापना हुई, क्योंकि भगवान शिव ने सृष्टि को एक बड़े संकट से बचा लिया था। भगवान शिव द्वारा विषपान की यह कथा उनके त्याग और करुणा का प्रतीक है। शिव जी का नीलकंठ स्वरूप बेहद निराला है। कहते हैं कि उनके इस रूप की उपासना करने से भक्तों के सभी कष्टों का अंत होता है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।