Kurma Dwadashi 2025: जनवरी में कब है कूर्म द्वादशी, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
पंचांग के अनुसार हर माह पौष माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर कूर्म द्वादशी मनाई जाती है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु के कच्छप अवतार की पूजा की जाती है। इस दिन विष्णु जी के कूर्म अवतार की पूजा करने से साधक के जीवन में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कूर्म द्वादशी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कूर्म, भगवान विष्णु के ही दूसरे अवतार हैं, जिनका अवतरण समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। जब समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को रस्सी बनाया गया, तब मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं था, जिस कारण वह समुद्र में धंसने लगा। तब भगवान विष्णु कूर्म (कछुए) का अवतार लिया और पर्वत के नीचे आ गए, जिस कारण समुद्र मंथन संभव हो पाया।
कूर्म द्वादशी शुभ मुहूर्त (Kurma Dwadashi Shubh Muhurat)
पौष माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 10 जनवरी को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर शुरु हो रही है। साथ ही इस तिथि का समापन 11 जनवरी को सुबह सुबह 8 बजकर 21 मिनट पर होने जा रहा है। ऐसे में कूर्म द्वादशी शुक्रवार 10 जनवरी को मनाई जाएगी।
इस तरह करें पूजा
सबसे पहले कूर्म द्वादशी के दिन जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करें। अब पूजा स्थल की अच्छे से साफ-सफाई करने के बाद चौकी स्थापित कर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। इस चौकी पर भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। आप चाहें तो भगवान विष्णु की भी तस्वीर स्थापित कर सकते हैं।
इसके बाद दीपक जलाएं और विष्णु जी को सिंदूर, लाल फूल आदि अर्पित करें। इस दिन भगवान विष्णु के भोग में तुलसी के दल जरूर शामिल करें। अंत में आरती करें और सभी में प्रसाद बांटें। अधिक लाभ के लिए आप इस दिन पर कुर्म स्तोत्रम् का पाठ भी कर सकते हैं।
कुर्म स्तोत्रम् (Kurma Stotram)
श्रीगणेशाय नमः
॥ देवा ऊचुः ॥
नमाम ते देव पदारविंदं प्रपन्नतापोपशमातपत्रम् ॥
यन्मूलकेता यततोऽञ्जसोरु संसारदुःखबहिरुत्क्षिपंति ॥
धातर्यदस्मिन्भव ईश जीवास्तापत्रयेणोपहता न शर्म ।
आत्मँल्लभंते भगवंस्तवांघ्रिच्छायां सविद्यामत आश्रयेम ॥
मार्गंति यत्ते मुखपद्मनीडैश्छंदः सुपर्णैऋर्षयो विविक्ते ।
यस्याघमर्षोदसरिद्वरायाः पदं पदं तीर्थपदं प्रपन्ना ॥
यच्छ्रद्धया श्रुतवत्या च भक्त्या संमृज्यमाने ह्रदयेऽवधार्य ।
ज्ञानेन वैराग्यबलेन धीरा व्रजेम तत्तेऽङघ्रिसरोजपीठम् ॥
विश्वस्य जन्मस्थितिसंयमार्थे कृतावतारस्य पदांबुजं ते ।
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व्रजेम सर्वे शरणं यदीश स्मृतं प्रयच्छत्यभयं स्वपुंसाम् ॥
यत्सानुबंधेऽसति देहगेहे ममाहमित्यूढदुराग्रहाणाम् ।
पुंसां सुदूरं वसतोऽपि पुर्यां भजेम तत्ते भगवत्पदाब्जम् ॥
पानेन ते देव कथासुधायाः प्रवृद्धभक्त्या विशदाशया ये ।
वैराग्यसारं प्रतिलभ्य बोधं यथांजसान्वीयुरकुण्ठधिष्ण्यम् ॥
तथापरे चात्मसमाधियोगबलेन जित्वा प्रकृतिं बलिष्ठाम् ।
त्वामेव धीराः पुरुषं विशंति तेषां श्रमः स्यान्न तु सेवय ते ॥
तत्ते वयं लोकसिसृक्षयाऽद्य त्वयानुसष्टास्त्रिभिरात्मभिः स्म ।
सर्वे वियुक्ताः स्वविहारतंत्रं न शक्नुमस्तत्प्रतिहर्तवे ते ॥
यावद्बलिं तेऽज हराम काले यथा वयं चान्नमदाम यत्र ।
यथोभयेषां त इमे हि लोका बलिं हरन्तोऽन्नमदंत्यनहाः ॥
त्वं नः सुराणामसि सान्वयानां कूटस्थ आद्यः पुरुषः पुराणः ।
त्वं देवशक्त्यां गुणकर्मयोनौ रेतस्त्वजायां कविमादधेऽजः ॥
ततो वयं सत्प्रमुखा यदर्थे बभूविमात्मन् करवाम किं ते ।
त्वं नः स्वचक्षुः परिदेहि शक्त्या देवक्रियार्थे यदनुग्रहाणाम् ॥
इति श्रीमद्भागवतांतर्गतं कूर्मस्तोत्रं समाप्तम् ।
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