Parijat Tree Origin: पारिजात के पेड़ की कैसे हुई थी उत्पत्ति? पढ़ें सत्यभामा के हठ से उसके स्वर्ग से धरती पर आने की कथा
Parijat Tree Origin पारिजात के पेड़ की उत्पत्ति और उसका धार्मिक महत्व जानने के लिए सागर मंथन और श्रीकृष्ण सत्यभामा की यह कथा पढ़ें।
Parijat Tree Origin: अयोध्या में श्री राम मंदिर के भूमि पूजन कार्यक्रम के समय पीएम नरेंद्र मोदी ने पारिजात का एक पौधा लगाया है। राम मंदिर के निर्माण के शुभारंभ के समय पारिजात का पौधा लगाना क्यों महत्वपूर्ण है? यह सवाल सबके मन में है। हम आपको पारिजात के पेड़ की उत्पत्ति और उसके धार्मिक महत्व के बारे में बताते हैं ताकि आप जान सकें कि पारिजात के पेड़ और फूल का देवताओं के लिए अत्यधिक महत्व क्यों है?
पारिजात के पेड़ की उत्पत्ति
एक बार देवराज इंद्र महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण श्री हीन हो गए। स्वर्ग लोग से वैभव, समृद्धि और संपन्नता खत्म हो गई। इससे सभी देवता बेहद परेशान और दुखी थे। इसके निवारण के लिए वे एक दिन भगवान विष्णु के पास गए। उन्होंने फिर देवताओं को असुरों की मदद से सागर मंथन करने की सलाह दी। देवताओं और असुरों की मदद से सागर मंथन हुआ, जिसमें से पहले विष निकला। उसे ग्रहण कर भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। फिर इसके बाद सागर से एक-एक करके 14 रत्न निकले। उसमें कल्पवृक्ष के साथ 'पारिजात' या 'हरसिंगार' का पेड़ भी था। उन 14 रत्नों में कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पद्रुम, रंभा, माता लक्ष्मी, वारुणी (मदिरा), चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष, शंख, धन्वंतरि वैद्य और अमृत शामिल थे। देवराज इंद्र ने सागर मंथन से निकले रत्नों में से पारिजात वृक्ष को स्वर्ग में स्थापित कर दिया।
देवपूजा में पारिजात का महत्व
सागर मंथन से ही माता लक्ष्मी और पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति हुई है। दोनों का उत्पत्ति स्थान एक ही है, ऐसे में लगाव स्वाभाविक है। इस वजह से माता लक्ष्मी को पारिजात के पुष्प अतिप्रिय हैं। भगवान शिव समेत सभी देवताओं की पूजा में पारिजात के पुष्प को शामिल किया जाता है।
स्वर्ग से धरती पर कैसे आया पारिजात?
पारिजात वृक्ष के स्वर्ग धरती पर आने की कथा रोचक है। एक बार कृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने उनसे पारिजात वृक्ष को लाने का हठ किया क्योंकि नारद जी से मिले पारिजात के सभी पुष्पों को कृष्ण ने रुक्मिणि को दे दिया था। जिससे सत्यभामा चिढ़ गई थीं। श्रीकृष्ण ने अपने दूत के माध्यम से इंद्र को संदेश भेजा कि वे पारिजात वृक्ष सत्भामा की वाटिका में लगाने को दे दें। लेकिन इंद्र ने देने से इनकार कर दिया। तब भगवान कृष्ण इंद्र को पराजित करके पारिजात वृक्ष को धरती पर लाए।