Move to Jagran APP

श्री कृष्ण से जुड़ी महाभारत की कथायें, आज जानें क्या था उडुपी के राजा के निश्चित अनुमान का रहस्य

महाभारत की महागाथा में हजारों एेसी कथायें हैं जो आपको आश्चर्य में डाल सकती हैं। आज हम आपको बता रहे है भारत के दक्षिणी राज्यों में प्रचलित उडुपी के राजा की अनोखी कहानी।

By Molly SethEdited By: Published: Thu, 30 Aug 2018 03:40 PM (IST)Updated: Fri, 31 Aug 2018 10:15 AM (IST)
श्री कृष्ण से जुड़ी महाभारत की कथायें, आज जानें क्या था उडुपी के राजा के निश्चित अनुमान का रहस्य
श्री कृष्ण से जुड़ी महाभारत की कथायें, आज जानें क्या था उडुपी के राजा के निश्चित अनुमान का रहस्य

युद्घ से विरत पर युद्घ में शामिल एक राज्य

loksabha election banner

आज जानिए कहानी एक एेसे राजा की जो महाभारत के यु़द्घ में शामिल नहीं हुआ फिर भी उसका महत्वपूर्ण हिस्सा था। ये कथा आपमें से बहुत से लोगों ने शायद ना पढ़ी आैर सुनी हो। इसका कारण ये है कि इसका संबंध सुदूर दक्षिण में तमिलनाडु से ज्यादा है बजाय उत्तर भारत के। ये तो आप सभी जानते हैं कि महाभारत सदियों पूर्व हुआ प्राचीन काल का एक प्रकार का विश्वयुद्घ ही था जिसमें अनगिनत देशों के राजाआें ने भाग लिया था। एक आम धारणा है कि इस युद्घ में केवल कृष्ण के भार्इ बलराम, धृतराष्ट्र के भार्इ विदुर आैर रुक्मी शामिल नहीं हुए थे, परंतु एेसा नहीं है एक आैर राज्य था जो युद्घ से संबंधित तो था पर उसने लड़ार्इ में हिस्सा नहीं लिया था।ये था दक्षिण का राज्य उडुपी।

भार्इयों की खींचतान से हुआ हैरान 

दरसल युद्घ में शामिल होने का निमंत्रण पा कर उडुपी नरेश अपनी सेना सहित कुरुक्षेत्र आये तो, परंतु कौरव और पांडवों की खींचतान आैर  उन्हें अपनी ओर मिलाने की कोशिशों से हैरान हो गए। वे इस युद्घ के सर्मथक भी नहीं थे, परंतु वे ये भी जानते थे कि इससे बचना आैर युद्घ का टलना संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने कृष्ण से पूछा कि वो बाकी लोगों की तरह युद्ध के लिए लालायित नहीं हैं किन्तु इससे अलग भी नहीं रह पा रहे हैं। वे ये भी समझ नहीं पा रहे कि दोनों ओर की इतनी विशाल सेना के भोजन का प्रबंध कैसे होगा। इस पर कृष्ण ने कहा कि उन्होंने बिलकुल उचित सोचा है, अब वे ही बतायें की क्या उनकी दृष्टि में इसका कोर्इ उपाय है।  तब उडुपी राज ने कहा कि उनकी ये इच्छा है कि मैं अपनी पूरी सेना के साथ दोनों सेनाआें के भोजन का प्रबंध करूं। इस पर कृष्ण ने उन्हें लगभग 50 लाख योद्धाआें के भोजन प्रबंधन करने की अनुमति दे दी। 

किया कुशल प्रबंध 

इसके बाद से उन्होंने कमाल की कुशलता से  इस प्रकार इंतजाम किया कि दिन के अंत तक एक दाना अन्न बर्बाद नहीं होता था। जैसे-जैसे दिन बीतते गए योद्धाओं की संख्या भी कम होती गयी, पर सभी हैरान थे कि पहले दिन की भांति हर रोज अंत तक उडुपी नरेश केवल उतने ही लोगों का भोजन बनवाते थे जितने वास्तव में उपस्थित रहते थे। कोर्इ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उन्हें कैसे पता चल जाता है कि आज कितने योद्धा मृत्यु को प्राप्त होंगे आैर वो उसी हिसाब से भोजन की व्यवस्था करवा देते थे। इतनी विशाल सेना के भोजन का प्रबंध करना वो भी बिना अन्न बर्बाद किए अपने आप में एक आश्चर्य आैर कठिन कार्य था, पर युद्घ के अंत तक उडुपी नरेश ने इसे उसी प्रकार करके दिखाया। 

कृष्ण का प्रताप 

अंत में पांडवों की विजय के साथ युद्ध समाप्त हुआ तब अपने राज्याभिषेक के दिन युधिष्ठिर ने उडुपी नरेश से कहा कि, सारे लोग पांडवों की प्रशंसा कर रहे हैं कि कम सेना के साथ पितामह भीष्म, गुरु द्रोण और कर्ण जैसे महारथियों के विरुद्घ लड़ने के बावजूद उन्होंने कमाल का कौशल दिखाया, आैर विजय प्राप्त की। जबकि वे अनुभव करते हैं कि सब से अधिक प्रशंसा के पात्र उडुपी नरेश हैं जिन्होंने ना केवल इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध किया बल्कि एक दाना भी अन्न व्यर्थ नहीं होने दिया। आखिर इस कुशलता का रहस्य क्या है। इसपर उडुपी नरेश ने कहा  युधिष्ठिर अपनी जीत का श्रेय किसे देंगे, तब युधिष्ठिर ने कहा ये श्री कृष्ण का प्रताप है, वे ना होते तो कौरव सेना को परास्त नहीं किया जा सकता था। तब उडुपी नरेश ने कहा कि वो भी श्रीकृष्ण का ही प्रताप है। सुन कर सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए।

क्या था रहस्य 

तब उडुपी नरेश ने इस रहस्य को स्पष्ट करते हुए बताया कि श्रीकृष्ण प्रतिदिन रात्रि में मूंगफली खाते थे। वे प्रतिदिन गिन कर मूंगफली उनके लिए भेजते थे और उनके खाने के पश्चात गिन कर देखते थे कि उन्होंने कितनी मूंगफली खायी हैं। कृष्ण जितनी मूंगफली खाते थे उससे ठीक 1000 गुणा सैनिक अगले दिन युद्ध में मारे जाते थे। मतलब अगर वे 50 मूंगफली खाते थे तो इसका अर्थ था की दूसरे दिन के युद्घ में 50000 योद्धा  मारे जाएंगे। बस उडुपी नरेश उसी अनुपात में अगले दिन का भोजन बनवाते थे। इस प्रकार कभी भी भोजन व्यर्थ नहीं होता था। श्रीकृष्ण के इस चमत्कार को जान कर सभी हैरान हो गए। कर्नाटक के उडुपी जिले के कृष्ण मठ में ये कथा अक्सर सुनाई जाती है। मान्यता है कि इस मठ की स्थापना उडुपी के सम्राट ने ही करवाई थी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.