Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    Karnavedha Sanskar: क्या है कर्णवेध संस्कार का महत्व, क्यों जातक के लिए है जरूरी

    By Shilpa SrivastavaEdited By:
    Updated: Sun, 06 Sep 2020 06:40 AM (IST)

    Karnavedha Sanskar हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में 9वां संस्कार है कर्णवेध। कर्ण यानि कान और वेध यानी वेधना/छेदना होता है। इसका संयुक्त अर्थ कान छेदना ...और पढ़ें

    Karnavedha Sanskar: क्या है कर्णवेध संस्कार का महत्व, क्यों जातक के लिए है जरूरी
    Zodiac Wheel

    वार्षिक राशिफल 2026

    जानें आपकी राशि के लिए कैसा रहेगा आने वाला नया साल।

    अभी पढ़ें

    Karnavedha Sanskar: हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में 9वां संस्कार है कर्णवेध। कर्ण यानि कान और वेध यानी वेधना/छेदना होता है। इसका संयुक्त अर्थ कान छेदना होता है। इसे श्रवणेन्द्रि भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस संस्कार के जरिए बच्चे का बौद्धिक विकास तो होता ही है साथ ही इससे अच्छी सेहत समेत बहुत सारे लाभ भी मिलते हैं। इस संस्कार को उपनयन संस्कार से पहले किया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिस शिशु का कर्णभेद संस्कार नहीं किया जाता है वो अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाता है। उसका अधिकार नहीं रह जाता है। पहले तो यह संस्कार बालक और बालिका दोनों का ही किया जाता था लेकिन अब समय के साथ-साथ यह संस्कार केवल कन्या का ही किया जाता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कर्णवेध संस्कार का महत्व:

    मान्यता के अनुसार, इस संस्कार को आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक करवाया जाता है। इस संस्कार को करने से मेधा शक्ति बढ़ती है। साथ ही अच्छे से ज्ञान अर्जित करने में भी मदद मिलती है। इससे जातक बुद्धिमान बनता है।

    कब किया जाता है कर्णवेध संस्कार:

    इस संस्कार को 12वें या 16वें दिन किया जाता है। लेकिन अगर इस दौरान इसे न किया जा सके तो यह संस्कार छठे, सातवें या आठवें मास में भी किया जा सकता है। वहीं, अगर इस दौरान भी यह संस्कार न किया जाए तो जातक के जन्म के इसे विषम वर्ष यानि तीसरे, पांचवे, सातवें साल में भी किया जा सकता है।

    कर्णछेद संस्कार की विधि:

    कान में जो मंत्र अभिमंत्रित किया जाता है वह निम्न है-

    भद्रं कर्णेभि: क्षृणयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:। स्थिरैरंगैस्तुष्टुवां सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायु:।। इस मंत्र को शिशु के कान में अभिमंत्रित किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मण और वैश्य वर्ण के जातकों का यह संस्कार चांदी की सुई से किया जाता है। वहीं, क्षत्रिय वर्ण के जातकों का सोने की सुई से यह संस्कार किया जाता है। शूद्र वर्ण के जातकों का यह संस्कार लोहे की सुई से किया जाता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण के जातकों का साही के कांटे से किया जाता है। इस संस्कार को करने से पहले जातक (बालक) के कान में देवपूजा के बाद मंत्र कहा जाता है। फिर पहले दाहिने कान में और उसके बाद बाएं कान में छेद किया जाता है। वहीं, बालिका के कान में पहले बाएं और फिर दाएं कान में छेद किया जाता है। फिर बायीं नासिका में भी थेद किया जाता है।

    डिस्क्लेमर-

    ''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है. विभिन्स माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं. हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें. इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी. ''