क्या आप भी सालों से एक ही समझ रहे हैं कन्यादान का अर्थ, तो भगवान श्रीकृष्ण से जानें इसका असल मतलब
हिंदू विवाह (Hindu Marriage) के दौरान कई तरह की रस्में निभाई जाती हैं जिसमें से कन्यादान भी एक महत्वपूर्ण रस्म है। हिंदू विवाह के दौरान पुत्री के पिता द्वारा यह रस्म जरूरी रूप से निभाई जाती है। लेकिन क्या आप इसका सही अर्थ जानते हैं अगर नहीं तो चलिए जानते हैं कि सही मायनों में कन्यादान का अर्थ क्या होता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। दान करना हिंदू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। दान करने की भावना परोपकार, उदारता और त्याग से जुड़ी हुई है। वहीं कन्यादान को भी कई लोग "कन्या का दान" समझ लेते हैं। लेकिन इसका अर्थ बिल्कुल अलग है। भगवान श्रीकृष्ण ने खुद इसके बारे में बताया है। चलिए जानते हैं कि क्या कन्यादान का अर्थ वहीं है, जो हम वर्षों से समझते आ रहे हैं।
कन्यादान का अर्थ
कन्यादान का सही अर्थ होता है "कन्या का आदान"। जिसका अर्थ होता है कि पिता अपनी बेटी की जिम्मेदारी वर को सौंपते हैं। साथ ही वर यह वचन देता है कि वह जीवन भर उसकी देखभाल करेगा। ऐसे में कन्यादान का अर्थ "कन्या का दान" नहीं समझना चाहिए, क्योंकि पुत्री का किसी वस्तु की तरह दान नहीं किया जा सकता। कई लोग कन्यादान को पुत्री का महादान भी कहते हैं और इसे बहुत ही पुण्य का काम मानते हैं। लेकिन कन्यादान का यह अर्थ लगाना भी सही नहीं है।
क्या है दान का सही अर्थ
दान का अर्थ होता है कि आपका उस वस्तु पर से अधिकार समाप्त हो गया है। दान उस वस्तु का किया जाता है, जिसे आपने कमाया है या जिस पर आपका अधिकार है। गरीबों, जरूरतमंदों की सहायता के लिए दान आदि किया जाता है, इसलिए हिंदू धर्म में दान को इतना महत्व दिया गया है।
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भगवान कृष्ण ने कही है ये बात
भगवान श्रीकृष्ण ने बलराम से कहा था कि कन्या कोई पशु नहीं है, जिसका दान किया जाए। कन्यादान का सही अर्थ है कन्या का आदान करना न कि कन्या का दान करना। यहां आदान का अर्थ है - लेना या ग्रहण करना।
कन्यादान के समय पिता होने वाले वर से कहता है कि मैंने अभी तक अपनी बेटी का पालन-पोषण किया, जिसकी जिम्मेदारी मैं आज से आपको सौंपता हूं। वहीं कन्यादान को पुत्री के दान के रूप में नहीं देखना चाहिए, क्योंकि इस रस्म में पिता का अपनी पुत्री पर से अधिकार समाप्त नहीं होता।
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