Kabirdas Jayanti 2025: 10 या 11 जून...संत कबीरदास जयंती कब है? जानें डेट और टाइम
कबीरदास जयंती (Kabirdas Jayanti 2025) कबीरदास जी के विचारों और शिक्षाओं को समर्पित है। यह ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। कबीरदास जी ने अपने दोहों से समाज को सही राह दिखाई। उनके दोहे प्रेम ज्ञान और आत्म-अनुशासन का महत्व बताते हैं। कबीरदास जी ने जातिवाद और सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया और लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। संत कबीरदास एक ऐसे महान कवि थे जिनके दोहे सदियों से लोगों को जीवन की सही राह दिखाते आ रहे हैं। कबीरदास जयंती उनके विचारों और शिक्षाओं को याद करने का एक बड़ा अवसर है। हिंदू पंचांग के अनुसार संत कबीरदास जयंती (Kabirdas Jayanti 2025) ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। वे न केवल आध्यात्मिक उपदेश देते थे, बल्कि सामाज की कुप्रथाओं को समाप्त करने पर भी बात करते थे।
वहीं, इसकी डेट को लेकर लोगों के बीच थोड़ी कंफ्यूजन बनी हुई है, तो आइए इस आर्टिकल में इसकी सही डेट जानते हैं, जो इस प्रकार हैं।
कबीरदास जयंती कब है? (Kabirdas Jayanti 2025 Date And Time)
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि 10 जून 2025 को सुबह 11 बजकर 35 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इसकी समाप्ति 11 जून को 1 बजकर 13 मिनट पर होगी। ऐसे में 11 जून को संत कबीरदास जयंती मनाई जाएगी।
कबीरदास जी के दोहे (Kabirdas Ji Ke Dohe)
1. "पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।"
अर्थ - इसका मतलब यह है कि केवल किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता। सच्चा ज्ञान तो प्रेम के ढाई अक्षरों को समझने और उसे जीवन में उतारने में है।
2. "बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।"
अर्थ - इस दोहे में कबीर कहते हैं कि जब हम दूसरों में बुराई खोजने निकलते हैं, तो हमें कोई बुरा नहीं मिलता। लेकिन जब हम अपने भीतर झाँकते हैं, तो पाते हैं कि हमसे बुरा कोई नहीं। यह हमें अपनी कमियों को स्वीकार करने और उन्हें सुधारने की प्रेरणा देता है।
3. "जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।"
अर्थ - इसका मतलब है कि व्यक्ति की पहचान उसकी जाति या बाहरी दिखावे से नहीं, बल्कि उसके ज्ञान और गुणों से होनी चाहिए। जैसे तलवार की कीमत उसकी धार से होती है, न कि म्यान से, वैसे ही साधु या किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसके ज्ञान और चरित्र से करना चाहिए।
4. "धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।"
अर्थ - इस दोहे में कबीर कहते हैं कि मन को धीरे-धीरे सब कुछ करने दो, क्योंकि हर काम का एक सही समय होता है। जैसे माली चाहे कितना भी पानी क्यों न डाले, फल तभी लगते हैं जब ऋतु आती है। यानी हमें परिणाम के लिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और धैर्यपूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
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