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    Janmashtami 2025: कान्हा की भव्य आरती से बनाएं जन्माष्टमी को खास, खुशियों से भर जाएगा जीवन

    Updated: Sat, 16 Aug 2025 06:20 AM (IST)

    जन्माष्टमी हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है जो भगवान कृष्ण के जन्म का प्रतीक है। यह पर्व 16 अगस्त यानी आज मनाया जा रहा है। इस दिन (Janmashtami 2025) को खास बनाने के लिए भगवान कृष्ण की भव्य आरती की जाती है। ऐसा करने से मुरली मनोहर की कृपा प्राप्त होती है।

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    Janmashtami 2025: जन्माष्टमी के दिन ऐसे करें भगवान कृष्ण की आरती।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जन्माष्टमी का पर्व बेहद शुभ माना जाता है। यह हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है, जो भगवान कृष्ण की पूजा के लिए समर्पित है। यह दिन भगवान कृष्ण के जन्म का प्रतीक है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। हर साल कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami 2025) पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।

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    हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल यह पर्व आज यानी 16 अगस्त 2025 को मनाया जा रहा है। वहीं, इस दिन को और खास बनाने के लिए आइए कान्हा की भव्य आरती करते हैं, जो इस प्रकार हैं।

    ॥श्रीकृष्ण जी की आरती॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    गले में बैजंती माला,

    बजावै मुरली मधुर बाला ।

    श्रवण में कुण्डल झलकाला,

    नंद के आनंद नंदलाला ।

    गगन सम अंग कांति काली,

    राधिका चमक रही आली ।

    लतन में ठाढ़े बनमाली

    भ्रमर सी अलक,

    कस्तूरी तिलक,

    चंद्र सी झलक,

    ललित छवि श्यामा प्यारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    कनकमय मोर मुकुट बिलसै,

    देवता दरसन को तरसैं ।

    गगन सों सुमन रासि बरसै ।

    बजे मुरचंग,

    मधुर मिरदंग,

    ग्वालिन संग,

    अतुल रति गोप कुमारी की,

    श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    जहां ते प्रकट भई गंगा,

    सकल मन हारिणि श्री गंगा ।

    स्मरन ते होत मोह भंगा

    बसी शिव सीस,

    जटा के बीच,

    हरै अघ कीच,

    चरन छवि श्री बनवारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    चमकती उज्ज्वल तट रेनू,

    बज रही वृंदावन बेनू ।

    चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

    हंसत मृदु मंद,

    चांदनी चंद,

    कटत भव फंद,

    टेर सुन दीन दुखारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    ॥आरती श्री राधा रानी जी की ॥

    आरती राधाजी की कीजै।

    कृष्ण संग जो कर निवासा, कृष्ण करे जिन पर विश्वासा।

    आरती वृषभानु लली की कीजै। आरती

    कृष्णचन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई।

    उस शक्ति की आरती कीजै। आरती

    नंद पुत्र से प्रीति बढ़ाई, यमुना तट पर रास रचाई।

    आरती रास रसाई की कीजै। आरती

    प्रेम राह जिनसे बतलाई, निर्गुण भक्ति नहीं अपनाई।

    आरती राधाजी की कीजै। आरती

    दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुख सब हरती।

    आरती दु:ख हरणीजी की कीजै। आरती

    दुनिया की जो जननी कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे।

    आरती जगत माता की कीजै। आरती

    निज पुत्रों के काज संवारे, रनवीरा के कष्ट निवारे।

    आरती विश्वमाता की कीजै। आरती राधाजी की

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।