Janaki Jayanti पर करें भगवान राम संग माता सीता की आरती, वैवाहिक जीवन होगा सुखी
हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर जानकी जयंती का पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस साल यह शुक्रवार 21 फरवरी यानी आज के दिन मनाई जा रही है। इस शुभ अवसर (Janaki Jayanti 2025 Aarti) पर मां सीता की पूजा होती है। साथ ही प्रभु श्रीराम का भी ध्यान किया जाता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जानकी जयंती हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। इस दिन को देवी सीता की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह पावन तिथि मां सीता की पूजा के लिए समर्पित है। पंचांग के अनुसार, जानकी जयंती फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह शुक्रवार 21 फरवरी यानी आज के दिन मनाई जा रही है। इस दिन को सीता अष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो साधक इस दिन (Janaki Jayanti 2025) सच्ची भक्ति के साथ उपवास रखते हैं, उन्हें मां सीता के साथ भगवान राम का आशीर्वाद भी मिलता है।
इसके साथ ही विवाह से जुड़ी सभी मुश्किलें दूर होती हैं, तो आइए मां को प्रसन्न करने के लिए उनकी भव्य आरती करते हैं।
।।भगवान राम की आरती।। (Shri Ramchandra Ji Aarti)
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
।।मां सीता आरती।। (Sita Mata Aarti)
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
जगत जननी जग की विस्तारिणी,
नित्य सत्य साकेत विहारिणी,
परम दयामयी दिनोधारिणी,
सीता मैया भक्तन हितकारी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
सती श्रोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा वित्त वन वन चारिणी,
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पवन मति आई,
सुमीरात काटत कष्ट दुख दाई,
शरणागत जन भय हरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
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