Jagannath Ratha Yatra 2025: जगन्नाथ मंदिर के 'महाप्रसाद' बनने की अजीब है परंपरा, दुनिया में कहीं नहीं होता ऐसा
Jagannath Ratha Yatra 2025 जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 में 27 जून से शुरू होगी। पुरी में भगवान जगन्नाथ के मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है जहाँ 500 रसोइए और 300 सहयोगी महाप्रसाद तैयार करते हैं। यहां का मुख्य प्रसाद भात है जो मिट्टी के सात बर्तनों में बनाया जाता है। सबसे ऊपर की हांडी का प्रसाद पहले पकता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जगन्नाथ पुरी में आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से रथ यात्रा (Jagannath Ratha Yatra 2025) शुरू होती है। यहां जाने का सबसे अच्छा समय यही होता है, जब आपको यहां जबरदस्त सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति हो सकती है। इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा (Puri Ratha Yatra 2025) 27 जून 2025 को शुरू होगी।
इस मौके पर हम आपको जगन्नाथ मंदिर के 'महाप्रसाद' (Jagannath Temple Mahaprasad) बनने की अजीब परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे। ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। यहां करीब 500 रसोइए और 300 सहयोगियों के द्वारा रथ यात्रा के दौरान महाप्रसाद तैयार किया जाता है।
मुख्य प्रसाद है भात
ये रसोइए वैसे तो 56 भोग बनाते हैं। मगर, यहां का मुख्य प्रसाद भात है। एक कहावत है कि 'जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ'। सबसे मजेदार बात यह है कि भगवान जग्ननाथ का महाप्रसाद किसी धातु के बर्तन में नहीं बनाया जाता।
मिट्टी के बर्तन में बनता है प्रसाद
महाप्रसाद बनाने के लिए बड़े मिट्टी के सात बर्तनों का प्रयोग किया जाता है। इन्हें एक के ऊपर एक करके रखा जाता है। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि सबसे पहले सबसे ऊपर की हांडी का प्रसाद पकता है। इसके बाद नीचे के बर्तनों का प्रसाद एक के बाद एक करके पकता है।
सबसे ऊपर का प्रसाद पकता है पहले
सबसे ऊपर का बर्तन छोटा और संकरा होता है। उसके नीचे का बर्तन उससे बड़ा और सबसे नीचे का बर्तन सबसे बड़ा होता है। सबसे ऊपर के बर्तन में दाल या खीर जैसी चीजें बनाई जाती हैं। जैसे-जैसे प्रसाद पकता है, नीचे की तरफ वाले बर्तन धीरे-धीरे गर्म होने लगते हैं और प्रसाद पकाने की प्रक्रिया जारी रहती है।
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कभी कम नहीं पड़ता है प्रसाद
कहते हैं सामान्य दिन में रोजाना करीब 20 हजार लोगों के लिए और विशेष दिन में करीब 50 हजार लोगों के लिए प्रसाद बनाया जाता है। मगर, यहां लाखों की संख्या में भक्त भी पहुंच जाएं, तो भी प्रसाद कम नहीं पड़ता है। हर भक्त को प्रसाद मिलता है।
यह भी कहा जाता है कि प्रसाद को मां लक्ष्मी की देख-रेख में पकाया जाता है। प्रसाद बनने के बाद यहां विमालदेवी के नाम से बने मां पार्वती के मंदिर में सबसे पहले भोग लगाया जाता है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ को भोग लगया जाता है।
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