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    Jagannath Rath Yatra 2025: कहां जाएंगे भगवान जगन्नाथ, बीमार होने पर क्या होगा, पढ़िए रथ यात्रा की रोचक बातें

    Updated: Mon, 09 Jun 2025 01:02 PM (IST)

    Jagannath Rath Yatra 2025 ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ का मंदिर हिंदुओं के चार धामों में से एक है। यहाँ 27 जून 2025 को रथ यात्रा निकाली जाएगी। यह यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है जिसमें शामिल होने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं।

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    Jagannath Rath Yatra 2025: रथ यात्रा से पहले भगवान को कराए जाएगा स्नान।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Jagannath Rath Yatra 2025: ओडिशा राज्य के पुरी में भगवान जगन्नाथ (Jagannath temple Puri) का भव्य और प्राचीन मंदिर है, जो हिंदुओं के चार धामों में से एक प्रमुख स्थान है। यहां इस साल 27 जून 2025 को शुक्रवार (Rath Yatra date and route) के दिन भव्य रथ यात्रा निकाली जाएगी। 

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    यह यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है। इस भव्य कार्यक्रम में शामिल होने के लिए देश-दुनिया से भक्त पहुंचते हैं। इस मौके पर जानते हैं कि पुरी में रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra 2025) कहां से निकाली जाती है? क्यों निकाली जाती है? भगवान जगन्नाथ कहां जाते हैं? 

    गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं भगवान 

    आपके सभी सवालों का हम एक-एक करके जवाब देंगे। सबसे पहले जानिए कि यह रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है। इस यात्रा को करते हुए भगवान जगन्नाथ साल में एक बार गुंडिचा माता के मंदिर जाते हैं। 

    रथ यात्रा शुरू करने से 18 दिन पहले भगवान को स्नान कराया जाता है। इस स्नान यात्रा में भगवान बीमार पड़ जाते हैं। इसके बाद उनका इलाज किया जाता है और औषधि का सेवन कराया जाता है। 

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    किस पेड़ की लकड़ी से बनते हैं रथ 

    भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए अलग-अलग तीन रथ बनाए जाते हैं। इसके लिए दारुक नाम के पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। पहले रथ में भगवान जगन्नाथ, दूसरे में भगवान बलभद्र और तीसरे में देवी सुभद्रा बैठती हैं। 

    गुंडिचा मंदिर जाने के बाद रथ यात्रा के चौथे दिन हेरा पञ्चमी होती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ की खोज में मां लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर जाती हैं। इस मंदिर में आठ दिवस विश्राम करने के बाद दशमी तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने मुख्य निवास पर वापस आ जाते हैं। 

    इसके बाद अगले दिन देवशयनी एकादशी का कार्यक्रम होता है। मंदिर में पूजा-पाठ की जाती है। इसके बाद भगवान श्रीहरि चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।