Jagannath Rath Yatra 2025: जगन्नाथ पुरी मंदिर का है सतयुग से कनेक्शन, यहां हैं रावण की कुल देवी
ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर का संबंध रामायण काल से भी है। कहते हैं कि यहां रावण की कुलदेवी का मंदिर है, जिन्हें विमलादेवी माता के नाम से जाना जाता है। भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को यहां अपने कुलदेवता भगवान जगन्नाथ की पूजा करने का निर्देश दिया था। आज भी यहां विभीषण वंदना की परंपरा चल रही है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन 27 जून 2025 को रथ यात्रा निकाली जाएगी। रथ यात्रा का समापन 5 जुलाई को होगा। इस दौरान लाखों की संख्या में देशभर से भक्त पहुंचेंगे। इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं कि इस मंदिर का सतयुग से भी कनेक्शन है।
यह तो आप सभी जानते ही होंगे कि जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की त्रिमूर्ति स्थापित है। मगर, इस जगह का अस्तित्व तो भगवान श्रीकृष्ण के अवतार से भी पहले से रहा है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर का रामायण से एक महत्वपूर्ण संबंध है।
जगन्नाथ जी को कलयुग का प्रत्यक्ष देवता माना जाता है। सतयुग में वहां बद्री नारायण, त्रेता में रंग नारायण और द्वापर में द्वारिकानाथ के रूप में पूजा जाता था। इससे यह संकेत मिलता है कि भगवान जगन्नाथ की पूजा और महत्व विभिन्न युगों से जुड़ा हुआ है।
विभीषण की भी होती है पूजा
रावण के छोटे भाई विभीषण से इस मंदिर का कनेक्शन जुड़ा हुआ है। कहते है कि उन्हें भगवान राम ने जगन्नाथ की आराधना करने का निर्देश दिया था। आज भी पुरी के मंदिर में विभीषण वंदना की परंपरा चल रही है।
इसससे पता चलता है कि इस मंदिर का कनेक्शन रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है। रामायण के उत्तरकांड के अनुसार, भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को अपने कुल देवता भगवान जगन्नाथ की आराधना करने का आदेश दिया था।
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रावण की कुलदेवी का है मंदिर
स्थानीय मान्यता में कहा जाता है कि यह जगह रावण की कुलदेवी विमला माता के अधिकार में थी। आज भी उनकी यहां पूजा होती है। कहते हैं कि विमलादेवी यहां की रक्षक देवीं हैं और उन्हें योगमाया और परमेश्वरी कहा जाता है। बताते चलें कि जगन्नाथ को विष्णु के अवतार के रूप में जाना जाता है। मगर, यहां भगवान राम की पूजा किए जाने का उल्लेख नहीं मिलता है।
इस मंदिर में भगवान विष्णु के दूसरे अवतार श्रीकृष्ण की उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ पूजा की जाती है। हालांकि, 16वीं सदी में तुलसीदास ने उन्हें राम के रूप में पूजा था। पुरी की अपनी यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को उन्हें रघुनाथ कहा था।
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