चैत के महीने में ब्याहता लड़कियों को 'भिटोली" देने की परंपरा है
कुमाऊं में चैत के महीने में ब्याहता लड़कियों को 'भिटोली" देने की परंपरा है। भिटोली का अर्थ है भेंट देना ।
भारतवर्ष में चैत के महीने में उत्सव मनाने की परंपरा रही है कहीं चेती चांद तो कहीं गुड़ी पड़वा और कहीं नवरात्रि महोत्सव मनाया जाता है। वहीं कुमाऊं में चैत के महीने में ब्याहता लड़कियों को 'भिटोली" देने की परंपरा है। भिटोली का अर्थ है भेंट देना ।
इस अवसर पर ब्याहता लड़कियों को घर बुलाकर कुमाऊंनी पकवान- सै, सिंगल, पूड़ी, आलू के गुटके, रायता, वस्त्र, आभूषण, रूपए, सामर्थ्य के अनुसार भेंट किया जाता है। हर लड़की भिटोली में मायके से आने वाले उपहार को प्राप्त करने के लिए न सिर्फ लालायित होती है बल्कि वह तो भिटोली में मायके से आए प्रेम, स्नेह, आशीर्वाद को पाकर निहाल हो जाती है।
कुमाऊं में यह कथा प्रचलित है
एक विवाहित लड़की के लिए उसकी माता चैत के महीने में अपने पुत्र के साथ भेंटन भेजती है। बहुत दूर का सफर तय कर जब भाई बहन के घर पहुंचता है तब बहन सोई रहती है। उसकी सास बहन को उठाती नहीं और भाई को चलता कर देती है। इधर बहन सो कर उठती है और सामने भिटोली देखकर बहुत खुश हो जाती है ,परंतु जैसे ही उसे पता चलता है कि उसका भाई भूखा ही वापस चला गया तब वह बहुत दुखी होती है क्योंकि मायका दूर होने के कारण भाई बहुत लंबा सफर पैदल तय करके आया था।
उसे इस बात का अफसोस होता है कि भाई आया और भूखा ही चला गया। वह रोती रहती है 'भै (भाई) भूखो , मैं सोती" इसी गम में बहन अपने प्राण त्याग देती है। यही बहन एक चिड़िया बन जाती है। कुमाऊं की वादियों में इन्हीं दिनों में एक चिड़िया की चहचहाने की आवाज इस तरह सुनाई देती है- भै भूखो, मैं सोती ...।
यही कारण है कि इस चिड़िया के चहकने से ही ब्याहताओं को अपने मायके की याद आने लगती है और वो उसे रोकती हैं कि हे चिड़िया तू मत चहक, नहीं तो मैं रो पडूंगी। और वह इस तरह से कहती हैं- 'न बासा घुघुती चैत की, याद ऐजा छी मके मैत की"। (चिड़िया चैत के महीने में मत चहक, मुझे अपने मायके की याद आ रही है।)
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