Somnath Temple: कैसे हुई थी सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना और क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा? जानें यहां
एक बार ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ महादेव के दर्शन हेतु कैलाश जा रहे थे। मार्ग में उनका मिलन स्वर्ग नरेश इंद्र से हुआ। इंद्र भी ऐरावत पर विराजमान होकर भ्रमण कर रहे थे। ऋषि दुर्वासा को देख उन्होंने शिष्टाचार प्रणाम किया। उस समय ऋषि दुर्वासा ने आशीर्वाद देकर उन्हें एक दिव्य पुष्प प्रदान किया। स्वर्ग नरेश इंद्र ने दिव्य पुष्प को ऐरावत के माथे पर सजा दिया।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Somnath Temple: देवों के देव महादेव को सोमवार का दिन बेहद प्रिय है। इस दिन भगवान शिव संग मां पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। साथ ही मनचाहा वर पाने हेतु सोमवारी का व्रत भी रखा जाता है। सोमवारी व्रत करने से विवाहित स्त्रियों को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही व्रती के पति की आयु भी लंबी होती है। वहीं, अविवाहित जातकों की शीघ्र शादी के योग बनते हैं। अतः विवाहित एवं अविवाहित दोनों ही वर्ग के साधक महादेव की पूजा करते हैं। साथ ही सोमवारी व्रत भी रखते हैं। भगवान शिव को कई नामों से जाना जाता है। इनमें एक नाम सोमनाथ है। ज्योतिषियों की मानें तो सोम एक संस्कृत शब्द है। इसका आशय चंद्र देव है। आसान शब्दों में कहें तो सोम का शाब्दिक अर्थ चंद्र होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित शिव मंदिर को क्यों सोमनाथ मंदिर कहा जाता है ? आइए, इससे जुड़ी पौराणिक कथा जानते हैं-
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समुद्र मंथन कथा
सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिर काल में ऋषि दुर्वासा के श्राप के चलते स्वर्ग श्रीविहीन हो गया। उस समय दानवों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर अपना अधिपत्य जमा लिया। ऐसा कहा जाता है कि एक बार ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ महादेव के दर्शन हेतु कैलाश जा रहे थे। मार्ग में उनका मिलन स्वर्ग नरेश इंद्र से हुआ। इंद्र भी नभ में ऐरावत पर विराजमान होकर भ्रमण कर रहे थे। ऋषि दुर्वासा को देख उन्होंने शिष्टाचार प्रणाम किया। उस समय ऋषि दुर्वासा ने आशीर्वाद देकर उन्हें एक दिव्य पुष्प प्रदान किया। स्वर्ग नरेश इंद्र ने दिव्य पुष्प को ऐरावत के माथे पर सजा दिया।
ऐरावत दिव्य पुष्प का स्पर्श पाकर तेजस्वी और ओजस्वी हो गया। तत्क्षण पुष्प को नीचे फेंक वन की ओर प्रस्थान कर गया। यह देख ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो उठे। उन्होंने स्वर्ग को श्रीहीन होने का श्राप दिया। ऋषि दुर्वासा के श्राप से स्वर्ग श्रीविहीन हो गया। दानवों के आतंक से बचाव हेतु स्वर्ग के सभी देवता पहले ब्रह्म देव के पास गए। इसके बाद जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास जाकर बोले- प्रभु! स्वर्ग छिन गया है। अब आप ही एक सहारा हैं। दानवों से स्वर्ग को मुक्त कराएं। तब भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन की सलाह दी। दानवों की सहायता से देवताओं ने समुद्र मंथन किया। इससे सर्वप्रथम विष निकला। विष देख सभी भाग खड़े हुए। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को भगवान शिव के पास जाने की सलाह दी।
भगवान शिव के पास जाकर देवता बोले- विष से हम सबकी की रक्षा करें। तब सृष्टि के कल्याण हेतु भगवान शिव ने विषपान किया। हालांकि, विषपान के समय मां पार्वती ने भगवान शिव की ग्रीवा को पकड़ रखा था। इससे विष गले से नीचे नहीं उतर पाया। अतः भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाता है। विषपान के बाद भगवान शिव को गले में जलन होने गली। उस समय देवताओं ने चंद्रमा को धारण करने की याचना की। कहते हैं कि चंद्रमा को शीश पर धारण करने से भगवान शिव को विष के जलन से मुक्ति मिली। इसके लिए भगवान शिव को भालचंद्र भी कहा जाता है।
क्यों कहलाए सोमनाथ ?
सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि एक बार भगवान शिव और मां पार्वती ने सभी देवी-देवताओं को भोजन पर आमंत्रित किया था। चंद्र देव भी रात्रि भोजन हेतु कैलाश पहुंचे थे। मां पार्वती और भगवान शिव ने सभी देवी-देवताओं का भव्य स्वागत किया। इस समय सभी देवी-देवताओं ने इच्छापूर्ण भोजन प्राप्त किया। इसके बाद सभी अपने-अपने लोक लौट गए। इस दौरान भगवान गणेश अपने वाहन मूषक पर सवार होकर कैलाश पर्वत पर क्रीड़ा कर रहे थे। भगवान गणेश के स्वरूप को देख चंद्र देव को हंसी आ गई। इस अवधि में मूषक का भी शारीरिक संतुलन बिगड़ गया। यह देख चंद्र देव बोले- हे भगवन! आपकी शारीरिक संरचना विचित्र है। आपके भार से मूषक का भी संतुलन बिगड़ गया है। स्थिति ऐसी है कि मूषक चल पाने में असमर्थ है। आपको देख किसी भी व्यक्ति के चेहरे पर हंसी आ सकती है।
यह सुन भगवान गणेश गुस्से में आ गए। तत्क्षण भगवान गणेश बोले- आपको अपनी चमक अत्यधिक अभिमान हो गया है। आपको श्राप देता हूं कि आप अपनी चमक खो बैठेंगे। भगवान गणेश के श्राप के चलते चंद्र देव की चमक धूमिल हो गई। उस समय चंद्र देव अपने लोक लौटने के बजाय भगवान विष्णु के पास पहुंचे और अपनी आपबीती सुनाई। तब भगवान विष्णु ने चंद्र देव को शिव उपासना करने की सलाह दी। कालांतर में जिस स्थान पर चंद्र देव ने भगवान शिव की तपस्या की। वर्तमान समय में वह स्थान सोमनाथ कहलाता है। चंद्र देव की कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्त किया। ऐसा भी कहा जाता है कि सोमनाथ में शिवलिंग स्थापित कर चंद्र देव ने भगवान शिव की तपस्या की।
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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