कैसे हुआ देवी छिन्नमस्तिका का अवतरण?
पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती ने अपनी सहचरियों की भूख शांत करने के लिए अपना सिर काट दिया था जिससे छिन्नमस्तिका का अवतरण हुआ। एक अन्य कथा में जगत को बचाने के लिए उन्होंने यह रूप धारण किया। छिन्नमस्तिका माता का स्वरूप बेहद ममतामयी है। मां अपने भक्तों के सभी दुखों को दूर करती हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। एक समय की बात है माता पार्वती अपनी दो सहचरियों 'डाकिनी' और 'शाकिनी' के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थीं। स्नान करते समय, उनकी सहचरियों को बहुत तेज भूख लगी और वे मां से भोजन की इच्छा प्रकट करने लगीं। देवी पार्वती ने उनकी भूख शांत करने के लिए अपने ही सिर को काट दिया। कटे हुए सिर को उन्होंने अपने बाएं हाथ में ले लिया, और उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएं निकलीं।
दो धाराओं को 'डाकिनी' और 'शाकिनी' ने पिया और तीसरी धारा उन्होंने खुद ही पी लिया। देवी छिन्नमस्तिका का स्वरूप बेहद निर्मल है। मां अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करती हैं।
शिव जी से जुड़ा है कनेक्शन
कई जगह ये भी बताया जाता है कि माता छिन्नमस्तिका देवी काली का ही स्वरूप हैं। अन्य प्रचलित कथाओं के अनुसार, एक बार पूर जगत में हाहाकार मच गया था, जिससे मुक्ति पाने के लिए लोगों ने देवी पार्वती का ध्यान किया। फिर माता (Goddess Chhinnamasta Story) ने भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए 'छिन्नमस्ता' का स्वरूप धारण किया और पूरे जगत में दोबारा से शांति स्थापित की।
लेकिन मां स्वयं प्रचण्ड रूप में आ गई थीं, जिससे धरती पर तबाही मचने लगी। तब सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से मदद मांगी। देवताओं की प्रार्थना सुनकर भोलेनाथ मां छिन्नमस्ता के पास पहुंचे।
खुद को ऐसे किया तृप्त
शिव जी को देखकर देवी ने उनसे कहा कि 'हे नाथ मुझे भूख सता रही है। मैं अपनी भूख कैसे मिटाऊं?' इसपर शिव जी बोलें कि 'आप इस पूरे जगत को धारण करती हैं, तो आपको भला किसकी आवश्यकता?' तब छिन्नमस्ता माता ने तुरंत अपनी गर्दन को खड़ग से काटकर सिर को बाएं हाथ में ले लिया।
गर्दन से खून की तीन धाराएं निकलीं, जिसमें से एक धारा का पान उन्होंने स्वयं किया और अन्य दो धाराओं से अपनी सहचरियों को तृप्त किया।
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