Holika Dahan 2025: इसलिए किया जाता है महाकाल के दरबार में सबसे पहले होलिका दहन
होलिका दहन का त्योहार हर साल फाल्गुन महीने में आता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल यह पर्व फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि यानी आज 13 मार्च को मनाया जा रहा है। इसे (Holika Dahan 2025) लेकर लोगों की अपनी-अपनी मान्यताएं और धारणाएं हैं। वहीं आज हम जानेंगे कि महाकाल के दरबार में सबसे पहले होलिका दहन क्यों किया जाता है?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। रंगों का त्योहार होली पूरे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसके एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, जिसे छोटी होली के रूप में भी जाना जाता है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। कहते हैं कि होलिका दहन की पवित्र अग्नि सभी तरह के कष्टों को समाप्त करने वाली होती है।
ऐसे में इसकी पूजा (Holika Dahan 2025) जरूर करनी चाहिए। वहीं, आज हम जानेंगे कि महाकाल के दरबार में सबसे पहले होलिका दहन क्यों किया जाता है?
महाकाल के धाम में सबसे पहले क्यों जलती है होलिका? (First Holi Celebration Mahakal Temple)
महाकालेश्वर मंदिर के सेवादार ''आचार्य पंडित शिव गुरु जी'' (महाकालेश्वर एवं मंगलनाथ मंदिर उज्जैन) बताते हैं कि ''महाकाल मंदिर में भगवान शिव की संध्या आरती प्रदोष काल के दौरान की जाती है। 13 मार्च को प्रदोष काल 06 बजकर 28 मिनट से शुरू हो रहा है।
इस समय में संध्या आरती और होलिका दहन किया जाएगा। प्रदोष काल में भद्रा का साया रहने वाला है। वहीं, महाकाल मंदिर में होलिका दहन के लिए किसी भी तरह का मुहूर्त नहीं देखा जाता है।
होलिका दहन मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, होलिका दहन का समय 13 मार्च रात 11 बजकर 26 मिनट से लेकर देर रात 12 बजकर 30 मिनट तक है।
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इकलौता दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग
मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग देश का इकलौता दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग हैं, जहां भक्तों की भारी तदाद में हर रोज भीड़ उमड़ती है। यहां की भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध है, जिसको देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं।
कहते हैं कि इस धाम में एक बार दर्शन करने से भक्तों के सभी दुखों का अंत हो जाता है। साथ ही मनचाही मुराद पूरी होती है।
देश में हैं कुल 12 ज्योतिर्लिंग
महाकाल के अलावा गुजरात में सोमनाथ और नागेश्वर, आंध्र प्रदेश में मल्लिकार्जुन, मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर, उत्तराखंड में केदारनाथ, महाराष्ट्र में भीमाशंकर, त्रयंबकेश्वर और घृष्णेश्वर, यूपी में विश्वनाथ, झारखंड में बैद्यनाथ और तमिलनाडु में रामेश्वरम् है।
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