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    Ramcharitmanas: करें राम चरित मानस की इन चौपाइयों का पाठ, जीवन की हर समस्या का मिलेगा समाधान

    Updated: Thu, 28 Dec 2023 03:56 PM (IST)

    Shri Ramcharit Manas तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस हिंदू धर्म की सबसे प्रमुख और लोकप्रिय कृति है। असल में यह महाकाव्य संस्कृत भाषा में लिखे गई रामायण का अवधी भाषा में का पुनर्लेखन ही है। आज हम आपको रामचरितमानस में निहित कुछ ऐसे दोहे और चौपाइयां बताने जा रहे हैं जिनमें व्यक्ति की हर समस्या का समाधान छिपा हुआ है।

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    Ramcharitmanas: करें राम चरित मानस की इन चौपाइयों का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ramcharit Manas Chaupai: 'रामचरितमानस' जिसे तुलसीदास द्वारा रचा गया है, हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। 'रामचरितमानस' में दी गई दोहे और चौपाइयों से मानव मात्र को प्रेरणा मिल सकती है। इस पवित्र ग्रंथ में मनुष्य की हर समस्या का हल मिल सकता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि जो लोग रोजाना रामचरितमानस के पाठ करते हैं, उनके ऊपर प्रभु श्री राम की कृपा बनी रहती है।

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    श्रीरामचरित मानस की चौपाई (Ramcharitmanas chaupai)

    हरि अनंत हरि कथा अनंता।

    कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥

    रामचंद्र के चरित सुहाए।

    कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥

    इस चौपाई में तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु श्री राम अर्थात ईश्वर अनंत है न उनका कोई आदि है और न ही अंत। किसी भी मनुष्य द्वारा भगवान श्री राम के सुंदर चरित्र को कोई व्यक्त नहीं किया जा सकता।  

    जा पर कृपा राम की होई ।

    ता पर कृपा करहिं सब कोई ॥

    जिनके कपट, दम्भ नहिं माया ।

    तिनके हृदय बसहु रघुराया ॥

    इस चौपाई का अर्थ है जिन पर प्रभु श्री राम की कृपा बरसती है, उस व्यक्ति को सांसारिक दुख छू भी नहीं सकते, क्योंकि उस व्यक्ति पर सभी की कृपा बनी ही रहती है। भगवान राम केवल उन्हीं लोगों के हृदय में वास करते हैं जिनके अंदर कपट, झूठ और माया नहीं होती।

    ‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयो किसान।

    पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान।।

    इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य का शरीर एक खेत की तरह है और मन इस खेत का किसान है। किसान जैसे बीज खेत में बोता है वैसा ही फल उसे मिलता है। ठीक इसी तरह कर्मों के अनुसार ही व्यक्ति को पाप या पुण्य का फल मिलता है।

    आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।

    ‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह।।

    इस दोहे में तुलसीदास जी बताते हैं कि कैसे व्यक्ति के घर कभी नहीं जाना चाहिए। तुलसीदास जी के अनुसार, जिस घर में जाने पर घर के लोग आपको देखकर प्रसन्न न हों और जिनकी आंखों में बिलकुल भी स्नेह न हो, ऐसे लोगों के घर कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहां आपका कितना भी लाभ छिपा हो।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'