हरियाली तीज आज, स्वर्ण-रजत हिंडोले में झूलेंगे बांकेबिहारी
ब्रज का विश्व प्रसिद्ध हरियाली तीज पर्व आज है। भगवान श्रीकृष्ण का सबसे प्रिय मास है सावन, जिसमें वह अपनी सखी-सहेलियों के साथ झूला झूलते हैं। विश्व प्रसिद्ध लाड़ली जी मंदिर में भी वृषभान नंदनी अपने प्रियतम के साथ प्राचीन स्वर्ण जड़ित हिंडोले में झूला झूलेंगी। बरसाना में मौजूद मुगलकालीन प्राचीन झूलों पर भी राधाकृष्ण के स्वरूपों को झुलाया
मथुरा। ब्रज का विश्व प्रसिद्ध हरियाली तीज पर्व आज है। भगवान श्रीकृष्ण का सबसे प्रिय मास है सावन, जिसमें वह अपनी सखी-सहेलियों के साथ झूला झूलते हैं। विश्व प्रसिद्ध लाड़ली जी मंदिर में भी वृषभान नंदनी अपने प्रियतम के साथ प्राचीन स्वर्ण जड़ित हिंडोले में झूला झूलेंगी। बरसाना में मौजूद मुगलकालीन प्राचीन झूलों पर भी राधाकृष्ण के स्वरूपों को झुलाया जाएगा। ब्रज मंडल में झूलन की परंपरा बहुत ही पुरानी है। हरियाली तीज के दिन से ब्रज में शुरू होने वाले झूलन महोत्सव यहां के सभी मंदिरों में होते हैं। बांकेबिहारी जी स्वर्ण-रजत हिंडोले में भक्ति की डोर से झूला झूलेंगे। उनकी एक झलक पाने को श्रद्धालुओं का जमावड़ा मंगलवार से ही लग चुका है। बरसाना में वृषभान नंदिनी (राधा जी) भी हिंडोले में झूलन महोत्सव का आनंद उठाएंगी। इसके साथ ही ब्रज के तमाम मंदिरों में भी झूलन महोत्सव मनाया जाएगा। ठा. बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत बताते हैं कि संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास महाराज के लड़ैतेबिहारीजी पांच सौ साल पहले फूल-पत्ती व कपड़े आदि से निर्मित झूले में झूलते रहे। मगर बदले परिवेश में अब भक्त उन्हें स्वर्ण-रजत निर्मित भव्य हिंडोले में बैठाते हैं। इस दौरान लाखों भक्त श्रद्धा की डोर से देर रात तक उन्हें झुलाएंगे।
छतरी में दर्शन देंगी लाड़ली:
हरियाली तीज के दिन बृषभान नंदनी गर्भगृह से बाहर निकलकर नीचे बनी संगमरमर की सफेद छतरी में विराजमान होकर अपने भक्तों को दर्शन देंगी। कहा जाता है कि हरियाली तीज के दिन राधा रानी अपनी ससुराल नंदगांव से बरसाना आती हैं। उनके आगमन का समाचार सुनकर उनकी सखियां उनको घर के दरवाजे पर रोक लेती हैं और उनसे कुशल-क्षेम पूछने लगती है। राधा रानी साल में तीन बार इस सफेद छतरी में भक्तों को नजदीक से दर्शन देती है।
जन्मभूमि में घटाएं, बरसाना में उत्सव:
हरियाली तीज के मौके पर आज श्रीकृष्ण जन्म भूमि पर हरी घटा और मंदिर द्वारिकाधीश पर स्वर्ण-रजत व फल-फूलों का हिंडोला सजाया जाएगा। घटा व हिंडोले के दर्शन श्रद्धालुओं को रात तक होंगे। वृषभान नंदिनी के लिए बुधवार को बरसाना के प्रसिद्ध मंदिर में झूलन महोत्सव की व्यापक तैयारियां की गई हैं। स्वर्ण-रजत हिंडोले में लाड़िली जू आज शाम को भक्तों को दर्शन देंगी। भक्तगण भी भक्ति के डोर से उन्हें झूला झुलाएंगे। इस पल के साक्षी बनने को श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है।
साल में एक बार निकलता हिंडोला:
बरसाना के बृषभान मंदिर, दादी बाबा मंदिर, मान मंदिर, मोर कुटी, राधारस मंदिर, कुशल बिहारी मंदिर, गोपाल जी मंदिर, श्यामा श्याम मंदिर, राम मंदिर में देव विग्रहों को झूलों में झुलाया जाएगा। सेवायत रासबिहारी गोस्वामी बताते हैं कि सोने-चांदी से जड़ित प्राचीन हिंडोला साल में सिर्फ एक बार ही निकलता है। इस हिंडोले का निर्माण गोस्वामी समाज द्वारा कराया गया था।
टोडरमल ने बनवाए थे पत्थर के झूले:
रासलीलानुकरण के आविष्कार व ब्रज के प्राचीन स्थलों व चिन्हों का प्राकट्य करने वाले श्रीलनारायण भट्ट ने करीब छह सौ साल पूर्व ब्रज में पांच स्थानों को झूलन लीला मानकर चिन्हित किया था। यह स्थान बरसाना में दानगढ़ व विलासगढ़, संकेत कात्यानी देवी मंदिर पर, अंजन बिहारी मंदिर आजनौंक, छात्रवन छाता में थे। इन पांच पत्थर के झूलों का निर्माण श्रीलनारायण भट्ट की प्रेरणा से अकबर के राजस्व मंत्री टोडरमल ने करवाया था। झूलों के साथ ही रास मंडलों का भी निर्माण कराया था। इनमें से दानगढ़, विलासगढ़, संकेत शेषशाई व अंजन बिहारी के झूले व रासमंडल आज भी रासलीला और झूलन लीला के प्रयोग में आते है। पांचवां छात्रवन वर्तमान छाता का झूला मुगल आक्रमणों में नष्ट हो गया।
पांच वर्षो में बन पाया था हिंडोला:
वृंदावन में बांकेबिहारी जी के लिए स्वर्ण-रजत जड़ित हिंडोले का निर्माण सन् 1942 में हुआ था। इसे बनारस के कारीगर लल्लन व बाबूलाल ने मिलकर पांच वर्षो के अंतराल में 1947 में तैयार किया। झूले के निर्माण के लिए कनकपुर के जंगल से शीशम की लकड़ियां मंगाई गईं। इसमें एक लाख तोले चांदी व दो हजार तोले सोने का इस्तेमाल किया गया। इस तरह का झूला संपूर्ण विश्व में कहीं नहीं है। स्वर्ण हिंडोले के अलग-अलग कुल 130 भाग हैं। स्वर्ण-रजत झूले का मुख्य आकर्षक फूल-पत्तियों के बेल-बूटे, हाथी-मोर आदि बने हुए हैं। झूले का निर्माण भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला ने श्रद्धालुओं के सहयोग से लाखों रुपये व्यय करके करवाया था।
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