गुरु गोविंद सिंह ने इन शक्तियों को मानते हुए इसके साथ एक का अंक लगा दिया
आवश्यकता इस बात की है कि हम गुरु गोविंद सिंह के दिखाए रास्तों पर चलें। उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करें मानवता की सेवा में अपना जीवन समर्पित करें।
गुरु गोविंद सिंह अपने उपदेशों में कहते हैं, ओम' का अर्थ है - ब्रहमा, विष्णु, महेश। जब हम ओम का उच्चारण करते हैं, तो इसका तात्पर्य होता है कि हम इस संसार को पालने वाली और फिर नाश करने वाली शक्ति के सामने अपना सिर झुका रहे हैं।
इन शक्तियों को मानते हुए इसके साथ एक का अंक लगा दिया, जिसका अर्थ है- इन तीन महान शक्तियों को पैदा करने वाला ईश्र्वर एक है, जो इन तीनों शक्तियों के ऊपर है। यही बात वेदों में भी कही गई है। गुरु गोविंद सिंह संत और सिपाही दोनों थे। वे तपस्वी होने के साथ-साथ परम योद्धा भी थे। उन्होंने समाज में ऊंच-नीच को समाप्त करने और समूची मानवता की सेवा करने का संदेश दिया। वे मानते थे कि इंसान धरती पर मानवता की सेवा के लिए ईश्र्वर के भेजे गए दूत हैं और उनका ध्येय धरती पर शांति व पे्रम की अलख जगाना है।
उन्होंने उन सभी बातों को संपूर्ण किया, जिनकी तरफ गुरु नानक ने इशारा किया। ईश्र्वर को सर्वशक्तिमान मान कर वे जीवन संग्राम में कूद पड़े। गुरु गोविंद सिंह एक आम इंसान की तरह रहते हुए धर्म की खातिर काम किया। लोगों को ईश्र्वर भक्ति की प्रेरणा दी और अन्याय के खिलाफ डटकर मुकाबला करने को कहा। वे कहते थे कि जुल्म सहना कायरता की निशानी है। इससे अत्याचारी के हौसले बढ़ जाते हैं। उन्होंने मुगलों के अत्याचार का मुकाबला करने के लिए सिख पंथ' की स्थापना की।
सिख का मतलब है- ऐसे लोग जिनका आचरण शुद्घ हो तथा जो आडंबरमुक्त हों। जो शस्त्र कला में दक्ष हों और जिनके भीतर अपने धर्म और अपनी मातृभूमि की रक्षा करने की भावना कूट-कूट कर भरी हो। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने पर जब उनके सामने पिता का पवित्र शीश लाया गया, तो बजाए रोने-धोने के उन्होंने प्रतिज्ञा की कि ऐसा शासन जो अन्याय करता हो, उसे वह खत्म करके ही चैन लेंगे। यह गुरु जी ही थे जिन्होंने अपने बच्चों में यह शक्ति भर दी कि वे अंतिम सांस तक लड़ेंगे। इसी शक्ति का यह कमाल था कि उनके दोनों साहबजादे हंसते-हंसते दीवारों में जिंदा दफ्न हो गए, लेकिन उन्होंने उफ तक नहीं की। उन्होंने मानव समाज के हित के लिए जंगलों में पत्थरीली जमीन पर सोना कबूल किया, पांव छलनी करवा लिए, पर कभी अन्याय के आगे सिर नहीं झुकाया।
गुरु जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे उच्च कोटि के लेखक, कवि व दार्शनिक थे। उनकी रचनाओं में जीवन- दर्शन के साथ-साथ आध्यात्मिक पुट भी है। वे अपने-आपको भारतीय समाज का अटूट अंग समझते थे। उन्होंने अपने दरबार में 52 कवियों को शामिल किया, जो भारतीय परंपराओं, इतिहास व गाथाओं के बारे में जनता को बताते थे, ताकि मानव समाज की सोच में क्त्रांतिकारी परिवर्तन आए। उन्होंने जहां पंजाबी में चण्डी-दी-वार' लिखी, वहीं हिंदी में वार-चण्डी' व सर्वलोक ग्र्रंथ की रचना की। लेकिन दुर्भाग्यवश बहुत सा कीमती साहित्य सरसा नदी में बह गया। यदि वह नष्ट न होता, तो निश्चित रूप से वह भारतीय साहित्य-संस्कृति का एक अनमोल खजाना साबित होता।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम गुरु गोविंद सिंह के दिखाए रास्तों पर चलें। उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करें और मानवता की सेवा में अपना जीवन समर्पित करें।
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