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    Guru Gobind Singh Jayanti के अवसर पर जानें उनके प्रमुख उपदेश, खुल जाएगी उन्नति की राह

    Updated: Mon, 06 Jan 2025 12:19 PM (IST)

    सिख धर्म में गुरु गोबिंद सिंह जयंती किसी पर्व से कम नहीं है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही सिखों के खालसा पंथ की स्थापना की थी। साथ ही उन्होंने खालसा पंथ की रक्षा के लिए मुगलों से 14 बार युद्ध भी लड़े थे। ऐसे में चलिए गुरु गोबिंद सिंह जयंती के इस खास अवसर पर जानते हैं प्रमुख वचन और उपदेश।

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    Guru Gobind Singh Jayanti पर पढ़ें उनके प्रमुख उपदेश (Picture Credit: Freepik)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh Jayanti 2025), सिख धर्म के 10 सिख गुरुओं में से दसवें गुरु हैं। इनका जन्म पौष शुक्ल की सप्तमी तिथि पटना साहिब में हुआ था। ऐसे में हर साल इस दिन को गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती के रूप में बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। 

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    पंचांग के अनुसार, इस साल आज यानी सोमवार, 06 जनवरी 2025 को गुरु गोबिंद सिंह जयंती मनाई जा रही है।उन्होंने अपने जीवन में कई उपदेश व शिक्षाएं दी हैं, जिन्हें जीवन में अपनाने से आप उन्नति पा सकते हैं। चलिए पढ़ते हैं गुरु गोबिंद सिंह जी के कुछ ऐसे ही उपदेश -

    गुरु गोबिंद सिंह जी के उपदेश -

    • हर इंसान का जन्म अच्छे कर्मों के लिए होता है और ईश्वर भी उन्हीं लोगों की मदद करता है, जो अच्छे कर्म करते हैं।
    • अगर आप केवल भविष्य के बारे में सोचते रहेंगे, तो वर्तमान को भी खो देंगे।
    • अपने अंदर से अहंकार को मिटा देंगे, तो आपको वास्तविक शांति का अनुभव होगा।
    • किसी भी इंसान को सुख-शांति और वैभव की प्राप्ति तभी होती है जब वह अपने भीतर के स्वार्थ को पूरी तरह से समाप्त कर लेता है।
    • असहाय लोगों पर अपना शक्ति प्रदर्शन कभी न करें।
    • हर इंसान को अपने द्वारा दिए गए वचन को हर कीमत पर निभाना चाहिए।
    • गुरु गोबिंद सिंह जी का कहना है कि ईश्वर ही क्षमाकर्ता है।
    • इंसान का स्वार्थ ही अनेक अशुभ विचारों का जन्मदाता है।
    • गुरु के बिना किसी को भगवान नहीं मिलता।

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    • हर इंसान को अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान के रूप में देना चाहिए।
    • व्यक्ति को किसी से ईर्ष्या करने के स्थान पर अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।
    • गुरुबानी को कंठस्थ करना चाहिए और अपने धर्म की कीर्ति करनी चाहिए।
    • अपने दुश्मन से लड़ने से पहले साम, दाम, दंड और भेद का सहारा लें और अंत में ही युद्ध का सहारा लें।
    • अपनी जवानी, जाति और कुल धर्म को लेकर कभी घमंड न करें।
    • इंसान से प्रेम करना ही, ईश्वर की सच्ची आस्था और भक्ति है।
    • भगवान के नाम के अलावा कोई सच्चा मित्र नहीं है, इसलिए हमेशा ईश्वर का चिंतन करें।

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