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    गुरु अर्जुन देव के स्वयं के लगभग 2000 शब्द गुरु ग्रंथ साहब में संकलित हैं

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Fri, 14 Apr 2017 12:31 PM (IST)

    गुरु जी ने कष्ट में हंसते-हंसते यही अरदास करते थे कि, तेरा कीआ मीठा लागे। हरि नामु पदारथ नानक मांगे॥

    गुरु अर्जुन देव के स्वयं के लगभग 2000 शब्द गुरु ग्रंथ साहब में संकलित हैं

    सिखों के चौथे गुरु रामदास जी के पुत्र थे, पांचवे गुरु अर्जुनदेव जी। अर्जुनदेव की मां का नाम भानी था। उनकी पत्नी का नाम गंगा जी और पुत्र का नाम हरगोविंद सिंह था। जो आगे चलकर सिखों के 6वें गुरु बने।

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    उस समय गुरु रामदास जी को जेठाजी के नाम से संबोधित किया जाता था। वहीं, अर्जुनदेव भी अपने दोनों बड़े भाईयों की अपेक्षा अधिक विद्वान थे। छोटी-सी उम्र में भी उनमें धार्मिक कार्यों के प्रति काफी रुझान था।

    ग्रंथ साहिब का संपादन गुरु अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास की सहायता से 1604 में किया था। गुरु अर्जुन देव के स्वयं के लगभग 2000 शब्द गुरु ग्रंथ साहब में संकलित हैं।

    गुरु अर्जुनदेव ने 'अमृत सरोवर' का निर्माण कराकर उसमें 'हरमंदिर साहब' का निर्माण भी कराया, जिसकी नींव सूफ़ी संत मियां मीर के हाथों से रखवाई गई थी। उन्होंने एक नगर भी बसाया जिसका रखा गया तरनतारन नगर। अर्जन देव की रचना 'सुषमनपाठ' का सिक्ख नित्य पारायण करते हैं।

    उन्होंने अपनी जिंदगी में कई दुःखों को महसूस किया। लेकिन वे शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया। गुरु जी ने कष्ट में हंसते-हंसते यही अरदास करते थे कि, तेरा कीआ मीठा लागे। हरि नामु पदारथ नानक मांगे॥