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    एक श्राप की वजह से रोजाना तिल बराबर कम हो रहा गोवर्धन पर्वत का आकार, पढ़ें पौराणिक कथा

    Updated: Sat, 04 Oct 2025 02:00 PM (IST)

    श्रीमद्भागवत पुराण और विष्णु पुराण गोवर्धन पर्वत की महिमा का वर्णन किया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार इंद्र देव ने क्रोध में आकर ब्रज में घनघोर वर्षा की जिससे सभी ब्रजवासी परेशान हो गए। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया लिया और सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। तभी से गोवर्धन पूजा की परम्परा चली आ रही है।

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    Govardhan Parvat Katha किसने दिया गोवर्धन पर्वत को श्राप?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है,  जो उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित है। गोवर्धन पर्वत की सात कोस यानी 21 किलोमीटर की परिक्रमा काफी प्रसिद्ध है। इसे लेकर यह माना जाता है कि इस परिक्रमा को करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

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    इसके साथ ही दीवाली पर्व के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा भी की जाती है। आज आप हम आपको गोवर्धन पर्वत से जुड़ी एक पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके अनुसार, यह पर्वत रोजाना तिल बराबर घटता जा रहा है। चलिए पढ़ते हैं वह पौराणिक कथा।

    ऋषि पुलस्त्य ने जताई ये इच्छा

    कथा के अनुसार, एक बार ऋषि पुलस्त्य तीर्थ यात्रा कर रहे थे। तभी उनकी नजर गोवर्धन पर्वत पर पड़ी और वह उसकी सुंदरता पर मोहित हो गए। उनके मन में यह इच्छा जागी कि क्यों न वह इस पर्वत को काशी ले जाया जाए और वहां स्थापित किया जाए। ताकि वह काशी में रहकर इस दिव्य पर्वत की पूजा-अर्चना कर सकें। तब उन्होंने द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि वह अपने पुत्र गोवर्धन को उनके साथ ले जाने की अनुमति दें।

    गोवर्धन पर्वत ने रखी ये शर्त

    द्रोणाचल पर्वत ने ऋषि पुलस्त्य को अनुमति को दे दी, लेकिन वह पुत्र वियोग से उदास भी हो गए। तब गोवर्धन ने ऋषि के साथ जाने के लिए यह शर्त रखी कि वह जहां भी गोवर्धन पर्वत को रख देंगे, वह वहीं स्थापित हो जाएगा। पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत की यह शर्त मान ली। तब गोवर्धन पर्वत ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा हूं, आप मुझे कैसे ले जाएंगे। तब ऋषि ने अपने तपोबल से हथेली पर पर्वत को उठा लिया और काशी की ओर चल दिए।

    ऋषि भूले अपना वचन

    जब रास्ते में ब्रज आया तो गोवर्धन पर्वत के मन में यह इच्छा जागी कि वह यहीं रूक जाएं, ताकि वह भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का आनंद ले सकें। तब गोवर्धन पर्वत ने अपना भार बढ़ाना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद जब ऋषि को गोवर्धन पर्वत भारी लगने लगा, तो उन्हें विश्राम करने की आवश्यकता महसूस हुई। ऋषि, गोवर्धन को दिए गए वचन को भूल गए और विश्राम करने के लिए उन्होंने पर्वत को नीचे रख दिया। जब उन्होंने दुबारा पर्वत को उठाने की कोशिश की, तो गोवर्धन से उन्हें वचन याद दिलाया।  

    क्रोध में आकर दिया ये श्राप

    ऋषि पुलस्त्य गोवर्धन को अपने साथ ले जाने की हठ करने लगे, लेकिन गोवर्धन अपनी जगह से नहीं हिला। गोवर्धन की इस जिद के चलते ऋषि को क्रोध आ गया और उन्होंने पर्वत को श्राप दे दिया। ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को यह श्राप दिया कि प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होगा और एक दिन ऐसा आएगा जब तुम पूरी तरह से धरती में समाहित हो जाओगे।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।