Gita Updesh: गीता के ये उपदेश सवार देंगे आपकी जिंदगी, नहीं सताएगा कोई दुख
रणभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्तव्य और अधिकार का ज्ञान दिया था जो श्रीमद्भगवत गीता में निहित है। गीता के उपदेश व्यक्ति को सही मार्ग दिखाने का काम करते हैं। आज हम आपको गीता के कुछ ऐसे उपदेश बताने जा रहे हैं जो जीवन को बेहतर बनाने में सहायक हो सकते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश श्रीमद्भगवत गीता में निहित हैं, जिसके रोजाना पाठ से आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव देख सकते हैं। आज हम आपको गीता के कुछ ऐसे उपदेश बताने जा रहे हैं, जो आपको जीवन को बेहतर बनाने का काम करते हैं। चलिए जानते हैं इस बारे में।
1. "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ।।"
गीता के एक अन्य श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को कर्म का महत्व बताने हुए कहते हैं - कि तेरा अधिकार केवल कर्म पर है, न कि उसके फलों पर। इसलिए व्यक्ति को फल की चिंता किए बिना केवल अपने कर्मों पर ही ध्यान देना चाहिए।
2. मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जीवन में सुख-दुख के आने-जाने का क्रम लगा रहता है। इसलिए व्यक्ति को इन परिस्थितियों से विचलित हुए बिना, धैर्यपूर्वक उन्हें सहन करना चाहिए। जब आप यह गुण सीख जाते हैं, तो आपको जीवन में कोई दुख परेशान नहीं कर सकता।
3. सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः।।
इस श्लोक में कहा गया है कि, व्यक्ति जैसा विश्वास करता है या सोचता है, वैसा ही बन जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर कोई व्यक्ति नकारात्मक सोच रखता है, तो जीवन में नकारात्मक परिणाम मिलने लगते हैं। वहीं सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति को हमेशा अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। इसलिए मनुष्य को खुद पर विश्वास रखना चाहिए और अपनी सोच सकारात्मक रखनी चाहिए।
4. चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।
तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः॥
इस श्लोक का अर्थ है कि दुख की उत्पत्ति का कारण केवल चिंता है, कुछ और नहीं। जो व्यक्ति इस बात को समझ लेता है वह सभी प्रकार की चिंताओं से मुक्त होकर सुख-शांत की जीवन जीता है और सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है।
5. ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
इस श्लोक में कहा गया है कि व्यक्ति जिस विषय के बारे में सोचता रहता है, उससे लगाव हो जाता है। इससे उस वस्तु को पाने की इच्छा पैदा होती है, जिसके पूरा न होने पर क्रोध आता है। इसलिए, मनुष्य को किसी भी चीज के अत्यधिक लगाव नहीं करना चाहिए। वरना यह दुख और क्रोध का कारण बन सकता है।
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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