कद्रू के छल से विनता बनी दासी, गरुड़ ने मां को ऐसे कराया दासत्व से मुक्त... पढ़ें पौराणिक कहानी
कश्यप ऋषि की पत्नियों विनता और कद्रू की कहानी में कद्रू ने छल से विनता को दासी बना लिया। गरुड़ ने अपनी माता विनता को दासता से मुक्त कराने का संकल्प लिया और देवताओं को पराजित कर अमृत कलश प्राप्त किया लेकिन उसका पान खुद नहीं किया। उनकी ईमानदारी भक्ति और संकल्प से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए थे।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कश्यप ऋषि को सृष्टि के रचनाकारों में से एक माना जाता है। दक्ष प्रजापति की पुत्रियां विनता और कद्रू, दोनों ने कश्यप ऋषि से विवाह किया था। विनता के दो पुत्र हुए अरुण सूर्य के सारथी बने और गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन बने। वहीं, कद्रू को सभी नागों की माता माना जाता है। उन्होंने नाग वंश को आगे बढ़ाया।
कद्रू के पुत्रों में वासुकि, शेषनाग तक्षक, अनंत, कंवल, कालिया, कर्कोटक, पद्मा, असावतार, महापद्म, शंख जैसे नाग देव शामिल थे। मगर, कद्रू का स्वभाव जलन और ईर्ष्या से भरा था। एक बार छल से उन्होंने अपनी बहन विनता को अपनी दासी बना लिया था। तब गरुण ने उन्हें दासत्व से मुक्त कराया था। आइए जानते हैं यह रोचक कहानी…
गरुड़ की माता विनता, कद्रू की सौतली बहन थीं। एक बार कद्रू और विनता ने एक शर्त लगाई थी कि किसके घोड़े के पूंछ का रंग क्या होगा। कद्रू ने अपने नागों को घोड़े की पूंछ में छिपने के लिए कहा, जिससे विनता हार गई और कद्रू की दासी बन गई।
स्वर्ग से लेकर आए अमृत कलश
गरुड़ ने अपनी माता को दासता से मुक्त कराने का संकल्प लिया। उन्होंने कद्रू से पूछा कि दासत्व से मां की मुक्ति के लिए उन्हें क्या करना होगा। तब कद्रू ने कहा कि यदि वह स्वर्ग से अमृत लेकर आएगा, तो उसकी माता को दासता से मुक्ति मिलेगी।
इसके बाद गरुड़ ने देवताओं को पराजित करके अमृत कलश प्राप्त कर लिया। जब वह अमृत कलश लेकर लौट रहे थे, तब मार्ग में भगवान विष्णु ने प्रकट होकर पूछा कि इस कलश को लेकर कहां जा रहे हो?
गरुड़ ने कहा कि मैंने अपनी सौतेली मां को वचन दिया है कि मैं उन्हें अमृत लाकर दूंगा। ये उनकी संपत्ति है। मैं यह कलश उन्हें देने जा रहा हूं।
भगवान विष्णु हुए गरुड़ पर प्रसन्न
तब भगवान विष्णु ने कहा कि यदि तुम इसे पी लो, तो अमर हो जाओगे। फिर तुम कुछ भी कर सकते हो। गरुड़ बोले कि इस समय यह मेरी सौतेली मां की संपत्ति है। यह मेरी मां को दासत्व से मुक्त कराने की वस्तु है।
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इसलिए मैंने इसे देवताओं से जीता है, लेकिन इस पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। भले ही यह अमृत है, लेकिन मैं इसका पान नहीं कर सकता। उन्होंने वह अमृत कलश कद्रू को सौंपा। इस तरह से उन्होंने खुद को और अपनी मां को दासत्व से मुक्त कराया।
अमृत पान से भी ज्यादा मिला फल
गरुड़ देव की यह बात सुनकर भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि तुम्हारी ईमानदारी और निष्ठा का मैं सम्मान करता हूं। तुम्हें बहुत ऊंचा स्थान मिलेगा और तुम बिना अमृत के भी अमर हो जाओगे। इसके बाद उन्होंने गरुड़ को अपना वाहन बना लिया।
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