Garuda Purana: हिंदू धर्म में आत्महत्या को क्यों माना गया है महापाप, इससे और बढ़ जाती हैं आत्मा की परेशानियां
आत्महत्या का अर्थ है स्वयं को मारना। जब व्यक्ति अपने जीवन के दुखों को झेल नहीं पाता तो वह आत्महत्या का सहारा लेता है। व्यक्ति को लगता है कि इस तरीके व ...और पढ़ें

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नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Garuda Purana: आत्महत्या कानून के अनुसार तो गलत है ही , साथ ही गरुण पुराण में भी इसे महापाप माना गया है। कई लोग परिस्थियों से हार मानकर आत्महत्या कर लेते हैं। लेकिन ऐसा करके वह अपनी आत्मा के साथ ही बुरा कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि गरुण पुराण के अनुसार, आत्महत्या के बाद हमारी आत्मा को क्या-क्या सहना पड़ता है।
आत्महत्या को क्यों माना गया है महापाप
मनुष्य को जीवन भगवान ने सत्कर्म करने के लिए दिया है। ऐसे में आत्महत्या करना अर्थात अपने जीवन का नाश करना है। हिंदू धर्म के अनुसार, 52 अरब वर्ष एवं 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मानव शरीर मिलता है। सभी योनियों में से मानव योनि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। एक मानव ही है जिसमें विवेक जैसा दुर्लभ गुण पाया जाता है। ऐसे में आत्महत्या करके अपने शरीर को गवाना एक पाप होने के साथ-साथ उस मनुष्य की मूर्खता है।
आत्महत्या के बाद आत्मा का क्या होता है
आत्महत्या करने वाला व्यक्ति सोचता है कि उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हैं। गरुण पुराण के अनुसार, जब कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है तो उसकी आत्मा मृत्युलोक में भटकती रहती है। ऐसे व्यक्ति की आत्मा को न तो स्वर्ग मिलता है और न ही नर्क। ऐसे में आत्मा अधर में लटक जाती है। इसलिए आत्महत्या के बाद आत्मा का सफर और भी कष्टकारी हो जाता है।
कैसे लोग बनते हैं भूत
शास्त्रों के अनुसार, जब आत्मा, शरीर में अपना सफर पूरा कर लेती है तो वह खुद ही शरीर छोड़ देती है। उपनिषदों में कहा गया है कि जब आत्म स्वाभाविक तरीके से शरीर को छोड़ती है तो उसे तुरंत ही नया शरीर प्राप्त हो जाता है। लेकिन आत्महत्या के बाद लम्बे समय तक आत्मा भटकती रहती है। ऐसा भी माना जाता है कि आत्महत्या करने वाले लोग ही भूत बनते हैं।
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