Garuda Purana: हिंदू धर्म में क्यों नहीं किया जाता शिशुओं का दाह संस्कार, जानिए क्या कहता है गरुड़ पुराण
Garuda Purana धार्मिक दृष्टि से इस अंतिम संस्कार का उतना ही महत्व होता है जितना की अन्य 16 संस्कारों का। दाह संस्कार आत्मा के शरीर से अलगाव का एक रूप है। जब शरीर को जला दिया जाता है तब अग्नि द्वारा मृत व्यक्ति की आत्मा मुक्त हो जाती है। अंतिम संस्कार द्वारा ही मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिल पाती है।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Garuda Purana: हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद शरीर को जलाने का विधान है जिसे दाह संस्कार कहा जाता है। लेकिन जब हिंदू धर्म में किसी शिशु या सन्यासी की मृत्यु होती है तो उसे जलाया नहीं जाता बल्कि उसे दफनाया जाता है। क्या आप इसके पीछे का कारण जानते हैं।
इसलिए नहीं होता शिशुओं का दाह संस्कार
गरुड़ पुराण के अनुसार यदि किसी महिला के बच्चे की गर्भ में मृत्यु हो जाती है या फिर 2 साल से कम उम्र के बच्चे की मृत्यु हो जाती है तो उसे जलाने की वजह दफनाया जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, इसका कारण यह है कि जब कोई शिशु जन्म लेता है तो उसमें मोह माया नहीं होती। जिससे आत्मा का शरीर को लेकर कोई लगाव नहीं होता और ऐसी स्थिति में अगर शिशु की मृत्यु हो जाती है तो आत्मा शरीर आसानी से छोड़ देती है।
क्यों जरूरी है दाह संस्कार
जैसे-जैसे मनुष्य बड़ा होता जाता है वह मोह माया में बंधता चला जाता है और शरीर में मौजूद उस आत्मा को शरीर से मोह होने लगता है। ऐसे में मृत्यु के बाद भी आत्मा मृतक के शरीर में दोबारा प्रवेश करने की कोशिश करती है जब तक कि मृतक का दाह संस्कार नहीं किया जाता। गरुड़ पुराण के अनुसार, अंतिम संस्कार के बाद ही आत्मा मुक्त होती है।
संत पुरुषों को क्यों दफनाया जाता है
गरुड़ पुराण के अनुसार, शिशुओं के अलावा संत पुरुषों और भिक्षुओं को भी जलाने की बजाय दफनाना जाना चाहिए। क्योंकि ऐसा मनुष्य कठोर तप के के कारण अपनी इंद्रियों को अपने काबू में कर लेता है। संत पुरुष मोह-माया और क्रोध आदि पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे में उस शरीर में उपस्थित उस आत्मा को शरीर से कोई लगाव नहीं रह जाता। मान्यताओं के अनुसार ऐसे व्यक्ति मृत्यु के बाद सीधा बैकुंठ धाम चले जाते हैं।
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