अगर बीवी के साथ आप भी करते हैं ऐसा व्यवहार, तो गरुण पुराण की ये सीख बदल देगी आपका जीवन
जो पुरुष अपनी पत्नी का शोषण या अपमान करते हैं, उन्हें जीवन में सामाजिक तिरस्कार झेलना पड़ता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद भी उन्हें कठोर दं ...और पढ़ें

गरुण पुराण की सीख (AI-generated image)

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अभी पढ़ेंधर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पत्नी को 'अर्धांगिनी' का दर्जा दिया गया है, जिसका अर्थ है पति के शरीर का आधा हिस्सा। लेकिन, समाज में अक्सर ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहां पुरुष अपनी शक्ति के अहंकार में अपनी पत्नी का शोषण करते हैं या उसके साथ क्रूरता करते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, ऐसे पुरुषों को न केवल इस जन्म में सामाजिक तिरस्कार झेलना पड़ता है, बल्कि मृत्यु के पश्चात यमलोक में भीषण यातनाएं भी उनका इंतजार कर रही होती हैं।
यमलोक में मिलने वाले कठोर दंड
गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि जो पति अपनी पत्नी को बिना किसी कारण के मानसिक या शारीरिक पीड़ा पहुंचाते हैं, उन्हें यमलोक में 'कुम्भीपाकम' नामक नरक में डाला जाता है। यहां पापी को खौलते हुए तेल के कड़ाहों में डाला जाता है। यह दंड उन लोगों के लिए है, जो अपनी पत्नी के मान-सम्मान की रक्षा करने के बजाय समाज में उनका तिरस्कार करते हैं।
विश्वासघात और पराई स्त्री का मोह
यही नहीं, यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी को धोखा देता है और पराई स्त्री के मोह में पड़कर अपनी पत्नी का त्याग करता है या उसे प्रताड़ित करता है, तो उसे अगले जन्म में भयानक बीमारियों और दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। गरुड़ पुराण में पत्नी के साथ किया गया विश्वासघात सबसे बड़ा 'ब्रह्मपाप' माना गया है।
धार्मिक कर्मों का फल हो जाता है शून्य
जो पुरुष अपनी पत्नी को अपशब्द बोलता है या उसे भूखा रखता है, उसके द्वारा किए गए दान-पुण्य, पूजा-पाठ और तीर्थ यात्राओं का कोई फल उसे नहीं मिलता। भगवान ऐसे व्यक्ति की प्रार्थना कभी स्वीकार नहीं करते। गृहस्थ जीवन में पत्नी को 'लक्ष्मी' का रूप माना गया है और जहां लक्ष्मी का अपमान होता है, वहां दरिद्रता और अशांति का वास हो जाता है।
यह केवल पौराणिक दंड की बात नहीं है, बल्कि यह हमारे नैतिक मूल्यों का आधार है। एक घर की सुख-शांति उस घर की स्त्री के सम्मान से जुड़ी होती है। गरुड़ पुराण के ये नियम मनुष्य को सचेत करते हैं कि शक्ति का अर्थ शोषण नहीं, बल्कि संरक्षण है। जब एक पुरुष अपनी पत्नी का सम्मान करता है, तो वह केवल एक धर्म का पालन नहीं कर रहा होता, बल्कि एक स्वस्थ समाज की नींव रख रहा होता है।
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