किंवदंती है कि जहां शिव स्खलित हुए वह स्थान गंगोत्री था
श्रीहरि ने मोहिनी अवतार लिया था। उन्होंने यह अवतार तब लिया, जब समुद्र मंथन से अमृत निकला था। और देवताओं और दानवों में यह वितरित करना था।
श्रीहरि ने मोहिनी अवतार लिया था। उन्होंने यह अवतार तब लिया, जब समुद्र मंथन से अमृत निकला था। और देवताओं और दानवों में यह वितरित करना था।
हालांकि मोहिनी अवतार में श्रीहरि ने छल से देवताओं को अमृत और दानवों को अन्य द्रव्य पिलाया था। पौराणिक मतानुसार दरअसल विष्णु जी के मोहनी रूप को ही अय्यप्पा की मां माना जाता है।
श्रीहरि का मोहिनी रूप काफी आकर्षक था। उन्होंने यह रूप लोककल्याण के लिए लिया था। इस रूप में श्रीहरि एक बहुत सुंदर युवा स्त्री के रूप में प्रकट हुए थे। अग्नि पुराण 3.12 में वर्णित है कि अमृत वितरण के लिए श्रीहरि यानी विष्णु जी द्वारा मोहिनी रूप धारण किया गया। और इसी समय भगवान शिव मोहिनी रूप पर आसक्त होकर स्लखित हो गए थे।
किंवदंती है कि जहां शिव स्खलित हुए वह स्थान गंगोत्री था। दरअसल यह तत्व ही अमुल्य पारद तत्व है। गंगाजल के कण-कण में पारद है। हिंदू शास्त्रानुसार यह पारद ही है जो संपूर्ण जगत के सृर्जन का मूलाधार है क्योंकि यह संसार आदि शक्ति के रज अर्थात गंधक और शिव की वीर्य अर्थात पारद से बना है।
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