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    Ganga Saptami पर तर्पण के समय करें विष्णु चालीसा का पाठ, पितरों को मिलेगा मोक्ष

    वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि (Ganga Saptami 2025) पर शिववास योग समेत कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में गंगा स्नान कर देवों के देव महादेव की पूजा करने से साधक के सुख और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुखों का अंत होता है।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 01 May 2025 09:00 PM (IST)
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    Ganga Saptami 2025: मां गंगा को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर गंगा सप्तमी मनाई जाती है। इस साल शनिवार 03 मई को गंगा सप्तमी है। यह दिन पूर्णतया मां गंगा को समर्पित होता है। इस शुभ अवसर बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद मां गंगा और देवों के देव महादेव एवं भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

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    राजा सगर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने के लिए पुण्यदायिनी मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं। इसके लिए गंगा सप्तमी पर पितरों का तर्पण एवं पिंडदान भी किया जाता है। इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक पर पितरों की कृपा बरसती है। अगर आप भी अपने पितरों को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान कर पितरों का तर्पण करें। वहीं, तर्पण के समय विष्णु चालीसा का पाठ करें।  

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    विष्णु चालीसा

    ॥ दोहा ॥

    विष्णु सुनिए विनय,सेवक की चितलाय।

    कीरत कुछ वर्णन करूँ,दीजै ज्ञान बताय॥

    ॥ चौपाई ॥

    नमो विष्णु भगवान खरारी। कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥

    प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी। त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥

    सुन्दर रूप मनोहर सूरत। सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥

    तन पर पीताम्बर अति सोहत। बैजन्ती माला मन मोहत॥

    शंख चक्र कर गदा बिराजे। देखत दैत्य असुर दल भाजे॥

    सत्य धर्म मद लोभ न गाजे। काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥

    सन्तभक्त सज्जन मनरंजन। दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥

    सुख उपजाय कष्ट सब भंजन। दोष मिटाय करत जन सज्जन॥

    पाप काट भव सिन्धु उतारण। कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥

    करत अनेक रूप प्रभु धारण। केवल आप भक्ति के कारण॥

    धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा। तब तुम रूप राम का धारा॥

    भार उतार असुर दल मारा। रावण आदिक को संहारा॥

    आप वाराह रूप बनाया। हिरण्याक्ष को मार गिराया॥

    धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया। चौदह रतनन को निकलाया॥

    अमिलख असुरन द्वन्द मचाया। रूप मोहनी आप दिखाया॥

    देवन को अमृत पान कराया। असुरन को छबि से बहलाया॥

    कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया। मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया॥

    शंकर का तुम फन्द छुड़ाया। भस्मासुर को रूप दिखाया॥

    वेदन को जब असुर डुबाया। कर प्रबन्ध उन्हें ढुँढवाया॥

    मोहित बनकर खलहि नचाया। उसही कर से भस्म कराया॥

    असुर जलंधर अति बलदाई। शंकर से उन कीन्ह लड़ाई॥

    हार पार शिव सकल बनाई। कीन सती से छल खल जाई॥

    सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी। बतलाई सब विपत कहानी॥

    तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी। वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥

    देखत तीन दनुज शैतानी। वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥

    हो स्पर्श धर्म क्षति मानी। हना असुर उर शिव शैतानी॥

    तुमने धुरू प्रहलाद उबारे। हिरणाकुश आदिक खल मारे॥

    गणिका और अजामिल तारे। बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥

    हरहु सकल संताप हमारे। कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥

    देखहुँ मैं निज दरश तुम्हारे। दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥

    चहत आपका सेवक दर्शन। करहु दया अपनी मधुसूदन॥

    जानूं नहीं योग्य जप पूजन। होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥

    शीलदया सन्तोष सुलक्षण। विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥

    करहुँ आपका किस विधि पूजन। कुमति विलोक होत दुख भीषण॥

    करहुँ प्रणाम कौन विधिसुमिरण। कौन भाँति मैं करहुँ समर्पण॥

    सुर मुनि करत सदा सिवकाई। हर्षित रहत परम गति पाई॥

    दीन दुखिन पर सदा सहाई। निज जन जान लेव अपनाई॥

    पाप दोष संताप नशाओ। भवबन्धन से मुक्त कराओ॥

    सुत सम्पति दे सुख उपजाओ। निज चरनन का दास बनाओ॥

    निगम सदा ये विनय सुनावै। पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥

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