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    Ganga Dussehra पर इस चमत्कारी स्तोत्र के पाठ से पितरों को मिलेगा मोक्ष, पूरे हो जाएंगे अधूरे काम

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 01 Jun 2025 09:00 PM (IST)

    इस साल शुक्रवार 06 जून को निर्जला एकादशी है। यह पर्व हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इससे एक दिन पहले यानी ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि (Ganga Dussehra 2025) पर गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस दिन मां गंगा और महादेव की पूजा की जाती है।

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    Ganga Dussehra 2025: गंगा दशहरा पर क्या करें और क्या न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, गुरुवार 05 जून को गंगा दशहरा है। यह पर्व हर साल निर्जला एकादशी से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर गंगा स्नान कर देवी मां गंगा की पूजा करने से साधक द्वारा जन्म-जन्मांतर में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही पूर्वजों को मोक्ष मिलती है। गंगा दशहरा के मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा समेत अन्य पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं।

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    ज्योतिषियों की मानें तो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर कई शुभ योग बन रहे हैं। इन योग में भगवान शिव संग देवी मां गंगा की पूजा करने से साधक को अक्षय और अमोघ फल मिलेगा साथ ही सभी संकटों से मुक्ति मिलेगी। अगर आप भी अपने पितरों को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर गंगा स्नान कर देवों के देव महादेव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय गंगा माता स्तोत्र का पाठ करें।

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    गंगा माता स्तोत्र

    देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गेत्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे।

    शङ्करमौलिविहारिणि विमले मममतिरास्तां तव पदकमले॥

    भागीरथिसुखदायिनि मातस्तवजलमहिमा निगमे ख्यातः।

    नाहं जाने तव महिमानंपाहि कृपामयि मामज्ञानम्॥

    हरिपदपाद्यतरङ्गिण गङ्गेहिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे।

    दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारंकुरु कृपया भवसागरपारम्॥

    तव जलममलं येन निपीतंपरमपदं खलु तेन गृहीतम्।

    मातर्गंगे त्वयि यो भक्तःकिल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः॥

    पतितोद्धारिणि जाह्नविगङ्गे खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे।

    भीष्मजननि हे मुनिवरकन्येपतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये॥

    कल्पलतामिव फलदां लोकेप्रणमति यस्त्वां न पतति शोके।

    पारावारविहारिणि गङ्गेविमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे॥

    तव चेन्मातः स्रोतः स्नातःपुनरपि जठरे सोपि न जातः।

    नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गेकलुषविनाशिनि महिमोत्तुड़े॥

    पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जयजय जाह्नवि करुणापांगे।

    इंद्रमुकुटमणिराजितचरणेसुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये॥

    रोगं शोकं तापं पापं हरहर मे भगवति कुमतिकलापम्।

    त्रिभुवनसारे वसुधाहारेत्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥

    अलकानन्दे परमानन्दे कुरुकरुणामयि कातरवन्द्ये।

    तव तटनिकटे यस्य निवासःखलु वैकुण्ठे तस्य निवासः॥

    वरमिह नीरे कमठो मीनःकिं वा तीरे शरटः क्षीणः।

    अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तवन हि दूरे नृपतिकुलीनः॥

    भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्येदेवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये।

    गङ्गास्तवमिमममलं नित्यंपठति नरो यः स जयति सत्यम्॥

    येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषांभवति सदा सुखमुक्तिः।

    मधुराकान्तापज्झटिकाभिःपरमानन्दकलितललिताभिः॥

    गंगास्तोत्रमिदं भवसारंवाञ्छितफलदं विमलं सारम्।

    शङ्करसेवकशङ्कररचितंपठति सुखीः तव इति च समाप्तः॥

    शिव बिल्वाष्टकम्

    त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं।

    त्रिजन्म पापसंहारम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च अच्चिद्रैः कोमलैः शुभैः।

    तवपूजां करिष्यामि ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    कोटि कन्या महादानं तिलपर्वत कोटयः।

    काञ्चनं क्षीलदानेन ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    काशीक्षेत्र निवासं च कालभैरव दर्शनं।

    प्रयागे माधवं दृष्ट्वा ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    इन्दुवारे व्रतं स्थित्वा निराहारो महेश्वराः।

    नक्तं हौष्यामि देवेश ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    रामलिङ्ग प्रतिष्ठा च वैवाहिक कृतं तधा।

    तटाकानिच सन्धानम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    अखण्ड बिल्वपत्रं च आयुतं शिवपूजनं।।

    कृतं नाम सहस्रेण ऐकबिल्वं शिवार्पणं।

    उमया सहदेवेश नन्दि वाहनमेव च।।

    भस्मलेपन सर्वाङ्गम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    सालग्रामेषु विप्राणां तटाकं दशकूपयो:।

    यज्नकोटि सहस्रस्च ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    दन्ति कोटि सहस्रेषु अश्वमेध शतक्रतौ।

    कोटिकन्या महादानम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    बिल्वाणां दर्शनं पुण्यं स्पर्शनं पापनाशनं।

    अघोर पापसंहारम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    सहस्रवेद पाटेषु ब्रह्मस्तापन मुच्यते।

    अनेकव्रत कोटीनाम् ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    अन्नदान सहस्रेषु सहस्रोप नयनं तधा।

    अनेक जन्मपापानि ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

    बिल्वस्तोत्रमिदं पुण्यं यः पठेश्शिव सन्निधौ।

    शिवलोकमवाप्नोति ऐकबिल्वं शिवार्पणं।।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।