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    Sankashti Chaturthi 2024: सावन की गजानन संकष्टी चतुर्थी पर करें इस कवच का पाठ, मिलेगा सुख-समृद्धि का आशीर्वाद

    हिंदू धर्म में भगवान गणेश की पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त बप्पा की पूजा विधिपूर्वक करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है। वहीं जो लोग अपने जीवन की मुश्किलों को दूर करने की कामना रखते हैं उन्हें गणेश कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए जो इस प्रकार है -

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 22 Jul 2024 02:38 PM (IST)
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    Sankashti Chaturthi 2024: गणेश कवच का पाठ -

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान गणेश (Ganesh ji) की पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है। गौरी पुत्र गणेश की पूजा के लिए चतुर्थी का दिन बहुत अच्छा माना जाता है। वहीं, सावन माह में गजानन संकष्टी चतुर्थी का व्रत 24 जुलाई को रखा जाएगा। ऐसा कहा जाता है कि यह पर्व बप्पा की आराधना के लिए सबसे उत्तम होता है। इस दिन उनकी पूजा से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

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    साथ ही गजानन सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन गणेश कवच का पाठ करना परम मंगलकारी होता है, तो आइए यहां पढ़ते हैं -

    ।।गणेश कवचम्।।

    ध्यायेत् सिंहगतं विनायकममुं दिग्बाहुमाद्ये युगे,

    त्रेतायां तु मयूरवाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम्।

    द्वापरे तु गजाननं युगभुजं रक्ताङ्गरागं विभुं,

    तुर्ये तु द्विभुजं सितांगरुचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ॥

    विनायकः शिखां पातु परमात्मा परात्परः।

    अतिसुन्दरकायस्तु मस्तकं महोत्कटः॥

    ललाटं कश्यपः पातु भ्रूयुगं तु महोदरः।

    नयने फालचन्द्रस्तु गजास्यस्त्वोष्ठपल्लवौ॥

    जिह्वां पातु गणक्रीडश्चिबुकं गिरिजासुतः।

    वाचं विनायकः पातु दन्तान् रक्षतु दुर्मुखः ॥

    श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिन्तितार्थदः।

    गणेशस्तु मुखं कण्ठं पातु देवो गणञ्जयः॥

    स्कन्धौ पातु गजस्कन्धः स्तनौ विघ्नविनाशनः।

    हृदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान् ॥

    धराधरः पातु पार्श्वौ पृष्ठं विघ्नहरः शुभः।

    लिंगं गुह्यं सदा पातु वक्रतुण्डो महाबलः ॥

    गणक्रीडो जानुजंघे ऊरू मङ्गलमूर्तिमान्।

    एकदन्तो महाबुद्धिः पादौ गुल्फौ सदाऽवतु॥

    क्षिप्रप्रसादनो बाहू पाणी आशाप्रपूरकः।

    अंगुलींश्च नखान् पातु पद्महस्तोऽरिनाशनः॥

    सर्वांगानि मयूरेशो विश्वव्यापी सदाऽवतु।

    अनुक्तमपि यत्स्थानं धूम्रकेतुः सदाऽवतु॥

    आमोदस्त्वग्रतः पातु प्रमोदः पृष्ठतोऽवतु।

    प्राच्यां रक्षतु बुद्धीशः आग्नेयां सिद्धिदायकः॥

    दक्षिणस्यामुमापुत्रो नैरृत्यां तु गणेश्वरः ।

    प्रतीच्यां विघ्नहर्ताव्याद्वायव्यां गजकर्णकः॥

    कौबेर्यां निधिपः पायादीशान्यामीशनन्दनः ।

    दिवाऽव्यादेकदन्तस्तु रात्रौ सन्ध्यासु विघ्नहृत्॥

    राक्षसासुरवेतालग्रहभूतपिशाचतः ।

    पाशाङ्कुशधरः पातु रजस्सत्वतमःस्मृतिम् ॥

    ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मीं च लज्जां कीर्तिं तथा कुलम्।

    वपुर्धनं च धान्यं च गृहदारान् सुतान् सखीन् ॥

    सर्वायुधधरः पौत्रान् मयूरेशोऽवतात्सदा ।

    कपिलोऽजाविकं पातु गजाश्वान् विकटोऽवतु॥

    भूर्जपत्रे लिखित्वेदं यः कण्ठे धारयेत् सुधीः।

    न भयं जायते तस्य यक्षरक्षपिशाचतः ॥

    त्रिसन्ध्यं जपते यस्तु वज्रसारतनुर्भवेत्।

    यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत् ॥

    युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्द्रुतम् ।

    मारणोच्चाटनाकर्षस्तंभमोहनकर्मणि ॥

    सप्तवारं जपेदेतद्दिनानामेकविंशतिम्।

    तत्तत्फलमवाप्नोति साध्यको नात्रसंशयः ॥

    एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि यः ।

    कारागृहगतं सद्यो राज्ञावध्यश्च मोचयेत् ॥

    राजदर्शनवेलायां पठेदेतत् त्रिवारतः।

    स राजानं वशं नीत्वा प्रकृतीश्च सभां जयेत् ॥

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